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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

गाना समाप्त हुआ तो सबने बेला को घेर लिया। इसी भीड़ में मेज पर रखा चाय का प्याला उलट गया और छींटे आनंद के सूट पर जा गिरे। वह झट से उठा और गुसलखाने की ओर बढ़ा। संध्या ने देखा कि बेला भी कुछ समय पश्चात् उसी ओर चल दी। उसने देखा-अनदेखा कर दिया और निशा से बातें करने लगी।

आनंद ने नल खोला ही था कि गुसलखाने का द्वार खुला और बेला भीतर आ धमकी। आनंद ने चौंककर पीछे देखा और बोला-'तुम!'

'जी - ये धब्बे यों न जाएँगे।' क्यों?

'चाय के धब्बे पानी से नहीं, नींबू से जाते हैं-नहीं तो यह शार्कस्किन का सूट नष्ट हो जाएगा।'

'तो नीबू कहाँ से आएगा?'

'आइए - मैं दिखाऊँ।'

बेला यह कहते हुए आनंद को अपने साथ भीतर खुलने वाले द्वार की ओर ले गई और उसे पापा के कमरे में बिठा दिया और स्वयं भागकर रसोईघर से नींबू उठा लाई और उसे काटते हुए बोली-'आप तकिए का सहारा ले लें।' 'वह क्यों?'

'पैंट तब ही साफ होगी - हाँ इसी प्रकार - अब जरा टाँग फैला लीजिए।'

'परंतु यह जूता' आनंद टाँग फैलाते हुए बोला।

'बिस्तर पर रख लीजिए' - यह कहकर बेला ने नींबू से पैंट के धब्बों को मिटाना आरंभ कर दिया। पैंट के बाद वह उसका कॉलर साफ करने लगी। ऐसा करते हुए वह उसके अधिक निकट होती गई। बाहर के स्थान की अपेक्षा वह स्थान शांत था किंतु आनंद को यह शांति अच्छी न लग रही थी। वह उसी सभा में लौट जाना चाहता था। अकेले में बेला से उसे डर-सा लग रहा था।

'आपने सूरत चिड़िया के इक्के की-सी क्यों बना रखी है' बेला ने उसे छेड़ते हुए कहा।

'यह तुम्हें क्या सूझ रही है? शीघ्र करो। कोई आ गया तो-’

'तो क्या? हमें खा जाएगा - न जाने आप मुझसे यों दूर क्यों हटते हैं?' 'दूर-क्या?'

'देखूं तो आपका दिल भय से धड़क रहा है - मुझे यहाँ तक सुनाई दे रहा है।' क्या?

'आपके हृदय की धड़कन।'

बेला ने झट से अपना कान आनंद के सीने पर रख दिया और यों प्रकट करने लगी मानों कुछ कह रही हो। उसका यह ढंग देख आनंद डर-सा गया। ठीक उसी समय पर्दा उठा और संध्या भीतर आई। दोनों चौंककर उछल पड़े जैसे किसी ने नींद में उन पर अंगारे फेंक दिए हों। बेला झट से बिखरे हुए नींबू के छिलके संभालने लगी।

'आओ संध्या' आनंद ने फूले हुए साँस पर अधिकार करते हुए कहा। 'लोग आपको देख रहे हैं। और आप'-

'कपड़ों पर लगे दाग साफ करवा रहा था। बेला कहती थी कि दाग तुरंत न गया तो कपड़ा नष्ट हो जाएगा।'

संध्या ने कड़ी दृष्टि से बेला को देखा जो उसका सामना न कर सकी और झट से बाहर चली गई।

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