लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ

नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

375 पाठक हैं

गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

वह मस्तिष्क की इन्हीं उलझनों में खोई बैठी थी कि किसी ने द्वार खटखटाया। आने वाले की पुकार सुनकर संध्या सहसा कांप गई। वह आनंद की आवाज थी।

'यह क्या पागलपन है?'

'घर चलो। सब तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।'

'आप चलिए - मैं कल सवेरे आ जाऊँगी।'

'पागल न बनो - बेला की बातों का बुरा मानना तुम्हें शोभा नहीं देता - वह तुम्हारी छोटी बहन ही तो है।'

'छोटी है इसीलिए तो यह बर्ताव है, बड़ी होती तो शायद मुझे घर से निकाल देती।'

'उसकी क्या मजाल जो पापा के होते हुए तुम्हें कुछ कह सके।'

'उसकी मजाल आपने शायद नहीं देखी। वह तो मुझसे यह भी कहती है कि आप उससे प्रेम करते हैं।'

'संध्या-’ वह क्रोध में चिल्लाया-'यह सब झूठ है, मेरी आँखों में तुम्हारे सिवा कोई नहीं। मैं कल ही रायसाहब से कहकर बात पक्की करवाता हूँ।' संध्या की आँखों में पल भर के लिए फिर उजाला आ गया। किसी धुंधली आशा पर मन-ही-मन मुस्कराई भी परंतु उसके मुख पर भावना प्रकट नहीं हुई। 'तो कब आओगी?' आनंद के इस प्रश्न ने उसे फिर होश में ला दिया। दो-एक क्षण चुप रहने पर वह बोली-

'कल सवेरे - आशा है आप भी वहाँ होंगे।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book