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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


पूवोंक्त शुभ समाचार लेकर आई थी उनकी तीसरी लड़की अन्नाकाली। उसने कहा-बाबूजी, विट्टी को देखने न चलोगे?

गुरुचरण ने लड़की के चेहरे की ओर देखकर कहा- बेटी, थोड़ा पानी तो ले आ, पिऊँगा।

लड़की जल लेने गई। उसके चले जाने पर गुरुचरण को सबसे पहले सौर के तरह-तरह के खर्चों का ख्याल आया। उसके बाद, किसी मेले-तमाशे की भीड़ के दिनों में जैसे स्टेशन पर गाड़ी पहुँचते ही जिस गाड़ी का दरवाजा खुला होता है उसमें तीसरे दर्जे के मुसाफिर गट्ठर-गठरी-बक्स वगैरह लिये-लादे, पागलों की तरह, और लोगों को ढकेलते-गिराते- कुचलते, बदहवास से, पिल पड़ते हैं वैसे ही गुरुचरण के मस्तिष्क के भीतर भाँति-भाँति की दुश्चिन्ताएँ-''मार-मार,' करती हुई-प्रवेश करने लगीं। उन्हें याद आया कि अभी पारसाल ही उनकी दूसरी कन्या के शुभ विवाह में बऊबाजार का यह दुमंजिला मकान रेहन हो गया है, और उसका भी छ: महीने का सूद सिर पर सवार है। दुर्गापूजा का त्योहार सिर पर आ पहुँचा है-और एक महीने की देर है। इस बंगालियों के सबसे बड़े त्योहार के अवसर पर मझली लड़की की ससुराल में कुछ कपड़े, गहने, मिठाई वगैरह सामान भेजना ही पड़ेगा। कल दफ्तर में रात के आठ बजे तक जमा-खर्च की विधि नहीं मिलाई जा सकी थी- आज दोपहर के भीतर ही सब हिसाब ठीक करके विलायत जरूर-जरूर भेजना होगा। कल आफिस के बड़े साहब ने कड़ा हुक्म जारी किया है कि जो कोई मैले कपड़े पहनकर आवेगा वह आफिस के भीतर पैर न रखने पावेगा; उस पर जुर्माना होगा। लेकिन इधर यह हाल है कि एक हफ्ते से धोबी का पता ही नहीं। जान पड़ता है, घर भर के आधे के लगभग कपडे़- लत्ते लेकर वह कहीं खिसक गया है। बेचारे गुरुचरण तकिये के सहारे बैठे भी नहीं रह सके, हुक्केवाला हाथ और ऊँचा करके लेट गये। मन में कहने लगे-भगवान्, कलकत्ते में रोज जो कितने ही आदमी गाड़ी-घोड़ों के नीचे कुचलकर मर जाते हैं, वे क्या मुझसे भी बढ़कर तुम्हारे श्रीचरणों में अपराधी हैं! दयामय, तुम्हारी दया से अगर एक बड़ी सी मोटर गाड़ी मेरी छाती के ऊपर होकर निकल जाती तो मेरा बड़ा उपकार होता!

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