लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> परिणीता

परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

366 पाठक हैं

‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।

2

श्यामबाजार में, एक बड़े आदमी अर्थात् अमीर के घर में, शेखर के ब्याह की बातचीत बहुत दिनों से चल रही थी। उस दिन वे लोग लड़के को देखने आये और अगले महीने के ही किसी एक शुभ दिन में विवाह का मुहूर्त ठीक करने की इच्छा प्रकट कर गये। किन्तु शेखर की माँ ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। उन्होंने महरी की मारफत बाहर बैठक में कहला भेजा कि लड़का खुद जाकर पहले लड़की को देख आबे और पसन्द कर ले, तब ब्याह होगा।

नवीन राय अर्थात् दुलहे के बाप की नजर सिर्फ जर के ही ऊपर थी। उन्होंने मालकिन की इस गड़बड़ डालनेवाली शर्त से अप्रसन्न होकर कहा-यह क्यों कहती हो? अब इसकी क्या जरूरत। लड़की तो देखी हुई है। ब्याह की बात पहले पक्की हो जाय, उसके बाद ''आशीर्वाद''* करने के दिन अच्छी तरह देखभाल लिया जायगा। (* बंगालियों में यह रीति है कि ब्याह के पहले वरपक्ष के लोग कन्या के पिता के घर जाकर कन्या को कुछ द्रव्य देकर आशीर्वाद देते हैं, और उसे देखते हैं।)

तथापि पुरखिन राजी नहीं हुईं-पक्का वचन नहीं देने दिया। उस दिन नवीन राय ने खफा होकर बहुत देर करके भोजन किया, और दिन को बाहर-बैठके में-ही लेटे रहे।

शेखर जरा शौकीन मिजाज का लड़का है। वह तिमंजिले के कमरे में रहता है। उसका कमरा खूब फैशनेबिल सामान से सजा हुआ है। पूर्वोक्त घटना के पाँच-छ: दिन बाद एक दिन वह तीसरे पहर अपने कमरे में बड़े आईने के आगे खड़ा, लड़की, को देखने जाने के लिए, साज-सामान कर रहा था-तैयार हो रहा था। एकाएक वहाँ ललिता पहुँच गई। दम भर चुपचाप खड़े-खड़े देखते रहने के बाद उसने पूछा- बहू को देखने न जाओगे?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book