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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

तरह-तरह के कथावाचक और प्रवचनकर्ता होते हैं। कृष्ण कथा में बड़ा रूमान है। एक कथा करनेवाले बहुत मशहूर हो गऐ थे। वे युवा थे, सुंदर थे, सुरीला कंठ था, नाटकीय थे। वाणी सिद्ध थे। वे मोहक कृष्ण कथा कहते थे। कभी खुद राधा बन जाते कभी कृष्ण। कृष्ण बनते तो राधा! राधा! पुकारते हुए बेहोश हो गिर जाते थे। यह नाटक था। पर उनकी कथा सुनकर तरुणियों के हृदय स्पंदित होते थे। उनमें प्रत्येक चाहती थी कि मैं इनकी गोपी राधा हो जाऊँ। कई शहरों में उनकी गोपियाँ थीं जिनके साथ वे रास रचाते थे।

कई युवतियाँ उन्होंने बिगाड़ी। एक दिन दूर से एक अजनबी मुझे खोजते आए। मैं अपने मित्र हनुमान वर्मा के घर बैठा था। उन्होंने रोते हुए सुनाया कि स्वामीजी ने उनकी लड़की को बिगाड़ दिया। वह घर छोड़कर उनकी मंडली में शामिल हो गई। उन्होंने पत्र बताए जिन पर आँसू टपकने के निशान थे। वे चाहते थे कि इन स्वामीजी का चरित्र उजागर कर दूँ। मैंने चिट्ठियाँ और सामग्री 'ब्लिट्ज' साप्ताहिक को भेज दी। एक दिन किसी ने बताया कि स्वामीजी तालाब के किनारे चीरहरण लीला कर रहे थे। लड़कियों के कपड़े लेकर पेड़ पर चढ़ गए थे। तभी वहाँ से कुछ साधु निकले। उन्होंने कृष्ण रूपी स्वामी को उतारा और चिमटे से काफी पीटा। उनका नाम सुनाई नहीं देता।

कई साल पहले एक बहुत लोकप्रिय कथावाचक हो गए हैं-राधेश्याम कथावाचक। इन्होंने रामचरित मानस की अवधी को चालू हिंदी में रूपांतरित कर दिया था। और वह लोगों की जबान पर आ गई थी। तुलसीदास ने लिखा है-

दामिनि दमक छिपत नभ माही

खल की प्रीति यथा थिर नाहीं।

अब देखिए राधेश्यामजी का ठाट : -

देखो लछमन बिजली,

कैसे चमक तुरत छिप जाती है

जैसे मुहब्बत लुच्चे की,

पल भर में खतम हो जाती है।

शूर्पणखा कटे नाक कान की रावण के पास जाती है और कहती है –

भाई दो लड़के इस दंडक वन में आए हैं,

वीर लड़ाके हैं, गोया शमशीर उन्हीं की है।

यों दंडक वन में रहते हैं

गोया जागीर उन्हीं की है।

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