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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

वे लौटे तो उन्हें पहिचाननेवालों ने कहा - भैया साब, उतरिए न। उन्होंने कहा - कैसे उतरूँ। जनता तो है नहीं। वे अगले बड़े शहर चले गए। वहीं से फोन पर कहा, कि इस गाड़ी से आ रहा हूँ। इंतजाम कर लेना। वे आए। छुटभैयों ने जय बोलनेवाली भीड़ प्लेटफार्म पर जमा कर ली थी। मालाएँ पहिनी, जय सुनी, तब रेल से उतरे। ऐसे ही नेता के बारे में कहा जाता है कि वे छुरे से गर्दन काटने की तैयारी कर रहे थे कि उनका चमचा पहुँच गया। उसने कहा - यह क्या कर रहे हैं भैयाजी? भैयाजी ने कहा - गर्दन काटकर फेंक रहा हूँ। ऐसी गर्दन रखते शर्म आती है, जिसमें एक महीने से माला नहीं डाली गई हो। चमचे ने कहा - रुकिए। मैं थोड़ी देर में लौटकर आता हूँ। चमचा कुछ एक चमचों और मालाओं को साथ लाया। भैयाजी के गले में मालाएँ डालीं, जय बोली। तब भैयाजी के प्राण बचे।

हमारा गरीब, विकासशील देश। शुरू में ही हमने बहुत आशाएँ लगाई, हमारे इन भाग्य विधाताओं से। कोई दो बार जेल गया था, कोई चार बार, कोई पाँच बार। ये देश का विकास करेंगे, गरीबी मिटेगी, हम खुशहाल होंगे। नेहरू ने नारा दिया - आराम हराम है। पर नेहरू के सामने ही त्यागी हरामखोर होने लगे। जीवन मूल्यों का नाश होता गया। ऊँचे स्तर से, महान त्यागियों के स्तर से भ्रष्टाचार शुरू हुआ, जो नीचे तक चला गया। पतनशीलता आ गई। जो अभिनंदनीय थे, वे निंदनीय होने लगे। कोई 'राहतकांड' वाला, कोई 'टाटपट्टी कांड' वाला, कोई 'जंगल कांड' वाला हो गया। लोग कहने लगे - वह एक सड़क खा गया, वह सीमेंट खा गया, वह तालाब पी गया, वह अस्पताल खा गया, वह इमारत खा गया, वह पाइप खा गया।

पहले कहते थे - भैयाजी पधार रहे हैं। बढ़िया मालाएँ ले जाना। सुंदर स्वागत द्वार सजाना। लड़कियों से स्वागत गान गवाना। फिर कहने लगे - अरे वो हरामखोर आ रहा है, जिसने अकाल राहत के पैसे खा लिए। हजारों बच्चों को भूखा मार डाला। तबादलों में भी लाखों खाए। उसके लिए कुछ माला-वाला ले आना सस्ती सी। कुछ आदमी खड़े हो जाना हाथ जोड़कर  'आइए' कहने के लिए। कुछ दिखावा तो करना पड़ेगा, उस दुष्ट के लिए। वे उद्घाटनकर्ता शायद ही कोई काम की बात करते हों। जिन लोगों के बीच जाएँगे उन्हें बताने लगते हैं कि यह देश महान है (उनके कारण) आप लोगों को देश का विकास करना है, निर्माण करना है, देश का गौरव बढ़ाना है आदि। फिर उपदेश कि आपके ये कर्तव्य हैं। जेबकतरों के राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन में कहेंगे - जेब काटने में भारत की महान परंपरा रही है। आपको इस गौरव के योग्य बनना है। देश का भविष्य जेबकतरों पर निर्भर है। आपको देश का विकास और निर्माण करना है। आप अपने कार्य को पूरी लगन और ईमानदारी से करें। आप जेब काटने की नई-नई विधियाँ सोंचें। यह सच्ची देश सेवा है। मैं आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामना व्यक्त करता हूँ।

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