लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


भारती हंस पड़ी, “डॉक्टर साहब के संबंध में आपकी भी उत्सुकता रहती है। आपको इस बात पर विश्वास नहीं होता कि संसार में जो कुछ भी जान लेना सम्भव है वह सब कुछ जानते हैं। जो कुछ किया जा सकता है वह कर सकते हैं। उनके लिए अज्ञान या असाध्य कुछ भी नहीं है।”

दोनों ने एक मकान में प्रवेश किया। भारती ने पुकारा, “पंचकौड़ी, आज तबीयत कैसी है?”

भीतर से आवाज आई, “आज कुछ ठीक है।”

इतने में एक बूढ़ा सामने आ खड़ा हुआ। बोला, “बेटी, लड़की को खूनी आंव रहता है। शायद बचेगी नहीं। लड़के को कल से फिर बुखार आ गया है। पास में एक पैसा भी नहीं कि एक-दो खुराक दवा ला सकूं। यह एक कटोरी साबूदाना या बार्ली ही पकाकर खिला सकूं।” उसकी दोनों आंखें आंसुओं से भर गईं।

अपूर्व बोला, “पैसा क्यों नहीं है?”

वह बोला, “पुली की जंजीर गिर जाने से बाएं हाथ में चोट लग गई है। लगभग एक महीने से काम पर नहीं जा सका। पैसा कहां से आएगा बाबू जी?”

अपूर्व बोला, “कारखाने वाले इसका कोई प्रबंध नहीं करते?”

“मजदूर के लिए प्रबंध? वह तो कह रहे हैं कि काम नहीं कर सकते तो मकान छोड़ दो। ठीक होकर आना। काम मिल जाएगा। ऐसी हालत में चला कहां जाऊं? छोटे साहब के हाथ-पांव जोड़कर एक हफ्ते और रह पाऊंगा। बीस वर्ष से काम कर रहा हूं महाशय। यह लोग ऐसे ही नमक हराम हैं।”

अपूर्व क्रोध से जल उठा। जी में आया कि मैनेजर मिल जाए तो उसकी गर्दन पकड़कर दिखा दूं कि अच्छे दिनों में जिसने लाखों रुपए कमाकर दिए हैं, आज बुरे दिनों में उसकी क्या हालत है?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book