ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
रामदास ने ऊंची आवाज में कहा, “भाइयों, मुझे बहुत-सी बातें कहनी थीं। लेकिन इन सबने बलपूर्वक हम लोगों का मुंह बंद कर दिया है।” इतना कहकर उसने पुलिस के घुड़सवारों की ओर संकेत किया, “इन विलायती कुत्तों को, जिन्होंने हमारे और तुम्हारे विरुद्ध ललकारा है, वह तुम्हारे कारखानों के मालिक हैं, वह नहीं चाहते कि कोई तुम्हें तुम्हारी दु:ख-दुर्दशा के बारे में बताए। तुम उनके कारखाने चलाने और बोझा ढोने वाले जानवर हो। लेकिन तुम भी उन्हीं जैसे मनुष्य हो। उसी प्रकार पेट भर भोजन करने का, उसी प्रकार आनंद करने का अधिकार भगवान ने तुम्हें भी दिया है। अगर इस सत्य को समझ सको कि तुम लोग भी मनुष्य हो, तुम भले ही कितने ही दुखी, कितने ही दरिद्र और कितने ही अनपढ़ क्यों न हो, फिर भी मनुष्य हो-तुम्हारी मनुष्यता के दावे को कोई भी किसी बहाने नकार नहीं सकता। यह चंद कारखानों के मालिक तुम्हारे सामने कुछ भी नहीं हैं। यह पूंजीपतियों के विरुद्ध गरीबों की आत्मरक्षा की लड़ाई है।
इसमें देश नहीं है, जाति नहीं है, धर्म नहीं है, मतवाद नहीं है, हिंदू नहीं है, मुसलमान नहीं है। जैन, सिख, कुछ भी नहीं है - केवल है धन में उन्मत्त मालिक और गरीब मजदूर! तुम्हारी शारीरिक शक्ति से वह डरते हैं। वह तुम्हारी शिक्षा की शक्ति को संशय की नजर से देखते हैं। तुम लोगों के ज्ञान पाने की आशंका से उनका खून सूख जाता है। अक्षय, दुर्बल, मूर्ख - तुम लोग ही तो उनके विलास-व्यसन के एक मात्र सहारे हो। इस सत्य को गांठ बांधना क्या तुम लोगों के लिए कठिन काम है? और इन्हीं बातों को स्पष्ट शब्दों में कहने के अपराध में, क्या आज इन गोरों के सामने हमारे अपमान की कोई सीमा रहेगी? गरीबों की आत्मरक्षा की लड़ाई में क्या तुम लोग अपनी पूरी शक्ति न जुटा सकोगे?”
गोरा नायक भाषण का अर्थ नहीं समझा, लेकिन श्रोताओं के चेहरों और आंखों में मचलती उत्तेजना देखकर उत्तेजित हो उठा। अपनी रिस्टवाच की ओर वक्ता का ध्यान आकर्षित करते हुए बोला, “और पांच मिनट का समय है। जल्दी खत्म कीजिए।”
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