ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
डॉक्टर ने पूछा, “यह रुपए क्या मुझे दे रहे हो?”
शशि बोले, “हां, मैं क्या करूंगा? आपके काम आ जाएंगे।”
भारती ने पूछा, “लेकिन उसे कब रुपए दे दिए?”
शशि ने कहा, “कल रुपए पाते ही उसे दे आया था।”
“उसने ले लिए थे?”
शशि ने कहा, “हां, अहमद को तो कुल तीस रुपए तनख्वाह मिलती है। वह एक मकान खरीदेगी।”
“जरूर खरीदेगी।” यह कहकर डॉक्टर हंसते हुए मुड़कर देखा, आंखों पर आंचल रखे भारती बरामदे के एक ओर हटती जाती है।
शशि ने कहा, “प्रेसीडेंट ने आपसे एक बार भेंट करने को कहा है। वह सरावाया जा रही हैं।”
डॉक्टर ने पूछा, “कब जाएंगी?”
शशि ने कहा, “जल्दी ही। लिवा जाने को एक आदमी आया है।”
भारती ने लौटकर पूछा, “सुमित्रा जीजी क्या सचमुच ही चली जाने को कहती थीं शशि बाबू?”
शशि बोले, “हां सचमुच ही। उनकी मां के चाचा के पास अगाध सम्पत्ति थी। हाल ही में उनकी मृत्यु हुई है। इनके अलावा और कोई उत्तराधिकारी नहीं है। उसके बिना काम नहीं चलेगा।”
डॉक्टर बोले, “काम नहीं चलेगा? ....तब तो जरूर जाएगी।”
शशि ने भारती की ओर मुड़कर कहा, “खाने को सामान बहुत पड़ा है। कुछ खाइएगा?”
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