ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
अपूर्व बोला, “फिर लौट चलूं?”
“हानि ही क्या है? अकेले जाने में मुझे जो शक है, वह तो न रहेगी।”
“मैं ठहरूंगा कहां?”
“मेरे यहां।”
ऑफिस से लौटने पर अपूर्व को आज भोजन भी नहीं मिला था। बड़े जोर की भूख लग रही थी। कुछ लज्जित होकर बोला, “देखिए, अभी तक मैंने कुछ खाया भी नहीं है। आपके लिए....”
डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, “चलिए न, आज भाग्य की परीक्षा करके देख ली जाए। लेकिन एक बात है, तिवारी को बहुत चिंता होगी।”
तिवारी की चर्चा होते ही अपूर्व के मन में अचानक एक हिंस्र प्रतिशोध की भावना जाग उठी। क्रुद्ध होकर बोला, “मर जाए सोचते-सोचते। चलिए, लौट चलें।”
दोनों फिर सुनसान रास्ते से लौट पड़े।
लेकिन इस बार उसे डर की बातें ही याद नहीं आईं। पुलिस स्टेशन पार करके अचानक पूछ बैठा, 'डॉक्टर साहब, आप एनार्किस्ट हैं?”
“आपके चाचा जी क्या कहते हैं?”
“उनका कहना है कि आप एक भयानक एनार्किस्ट हैं।”
“मैं सव्यसाची हूं इस संबंध में आपको संदेह नहीं?”
“नहीं।”
“एनार्किस्ट से आप क्या अर्थ लगाते हैं?”
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