ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
|
286 पाठक हैं |
हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
डॉक्टर ने आंखें फाड़कर कहा, “मेरे दल का अर्थ एनार्किस्टों का दल ही तो है। आप व्यर्थ ही शंकित हो उठे हैं अपूर्व बाबू! आदि से अंत तक आपने गलत समझा है। यह लोग जीवन-मरण के खेल में शामिल हैं। वह लोग आपके जैसे कायर आदमी को अपने दल में क्यों शामिल करेंगे? वह क्या पागल हैं?”
अपूर्व लज्जा से लाल हो उठा, लेकिन उसकी छाती पर का भारी बोझ हट गया।
डॉक्टर ने कहा, 'पथ के दावेदार' नाम रखकर सुमित्रा ने इस दल की स्थापना की है। जीवन-यात्रा में, पथ पर चलने का मनुष्य को कितना बड़ा अधिकार है, संस्था के सदस्य अपना पूरा जीवन लगाकर यही बात हर मनुष्य को बता देना चाहते हैं। सुमित्रा के अनुरोध पर जितने दिन यहां रहूंगा इस दल को सुसंगठित करने का प्रयत्न करूंगा। इसके अतिरिक्त मेरा कुछ संबंध नहीं। यह है समाज सुधारक। लेकिन समाज-सुधार के लिए घूमने को न तो मेरे पास समय है न धैर्य। हो सकता है कुछ दिन यहां रहूं। हो सकता है कल ही चलता बनूं। फिर जीवन भर भेंट न हो। मेरे जीने या मरने का समाचार भी सम्भव है आप तक न पहुंचे।”
यह वचन शांत और धीमे थे। उच्छ्वास का आवेग उनमें नहीं था। सव्यसाची का जो विवरण उसने चाचा जी से सुना था वह अपूर्व को याद आ गया। लेकिन तभी याद आया-वह तो पत्थर है उसके लिए पीड़ा का अनुभव कैसा?
उसने पूछा, “सुमित्रा कौन है? आपसे कैसे परिचय हुआ?”
डॉक्टर थोड़ा हंस दिए। उत्तर न मिलने पर अपूर्व स्वयं समझ गया कि पूछना ठीक नहीं हुआ?
कुछ पल मौन रहकर डॉक्टर बोले, “आपकी कृपा से आज रास्ता निर्विघ्न है। लेकिन अकसर होता नहीं। लेकिन आप क्या सोच रहे हैं, सुनूं तो?”
|