ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
डॉक्टर बोले, “देखिए अपूर्व बाबू, भारती बहुत अच्छी लड़की है। जैसी बुद्धिमती है वैसी ही कर्मठ और शिष्ट भी।”
यह बात भी बेकार थी। लेकिन अपूर्व ने यह भी नहीं पूछा कि आप उससे कितने दिनों से परिचित हैं और किस प्रकार? वह बोला, “हां।”
लेकिन डॉक्टर शायद अपनी अंतिम बात का ही सूत्र पकड़कर बोले, “आपके विषय में उन्होंने बताया था कि आप भयंकर हिंदू हैं-एकदम कट्टर। भारती ने कहा था कि उसने इतने कट्टर हिंदू की भी जात बिगाड़ दी है।”
अपूर्व बोला, “हो सकता है।”
उसकी तर्क करने की इच्छा नहीं थी। रास्ता भी लगभग समाप्त हो चला था। गली के मोड़ पर डॉक्टर ने जैसे अपने सुस्त मन को एकाएक झकझोर कर जगा दिया। बोले, “अपूर्व बाबू?”
स्वर की तेजी से सचेत होकर अपूर्व ने सतर्क होकर कहा, “कहिए।”
डॉक्टर बोले, “मेरे यहां रहने की कोई आवश्यकता नहीं। मेरे चले जाने पर अपना संकोच छोड़कर सुमित्रा की सहायता कीजिएगा। ऐसी स्त्री आप सारे संसार में भी न पा सकेंगे। इसका 'पथ का दावेदार' कहीं निरादर तथा अवहेलना से मर न जाए।”
“तो फिर आप छोड़कर क्यों जा रहे हैं?”
“यहां से चले जाना ही मंगलमय है। मेरी सहायता की आप लोगों को जरूरत नहीं। सब लोग मिलकर इसे संगठित कीजिए। इसी के द्वारा देश का सबसे बड़ा कल्याण होगा।”
“नवतारा की घटना पर तो मैं विश्वास नहीं कर सकता डॉक्टर साहब।”
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