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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


शायद आत्मीय-बंधुओं ने उसे त्याग दिया है। डरपोक, लोभी और नीच विचारों का होने के कारण बंधु-बांधवों के बीच वह निंदनीय है और सब दु:खों से बड़ा दु:ख तो यह है कि उसकी मां आज इस लोक में नहीं है। भारती को यह बात मालूम थी कि लज्जा के कारण अपूर्व किसी परिचित के पास नहीं जा सका था। और सारी लज्जा को तिलांजलि देकर वह बार-बार उसी के पास दौड़ा आया था। उद्यम की पटुता, व्यवस्था की श्रृंखला, कार्य की तत्परता - कुछ भी तो नहीं है उसमें। फिर जब धर्मशाला में असह्य निर्जनता और कोलाहल, हर प्रकार के अभावों और असुविधाओं के बीच उसकी मां की मृत्यु हो गई तब अकेले उसके वह क्षण किस तरह बीते होंगे - इस बात की कल्पना करके उसकी आंखों के आंसू रोकने पर भी नहीं रुक सके।

आंखें पोंछते-पोंछते जो बात उसे अनेक बार याद आई थी वही बात उसे फिर याद आ गई। मानो सभी दु:खों का सूत्रपात अपूर्व की उसके साथ जान-पहचान होने के साथ ही हुआ हो। नहीं तो पिता और बड़े भाई की उद्दंडता, उच्छृंखलता के विरुद्ध जब उसने मां का पक्ष लेकर सैकड़ों दु:ख सहे थे तब स्वार्थ-बुद्धि ने उसे सत्य से विचलित क्यों नहीं किया? तब दुर्बलता कहां थी। अपने कर्माचरण में, आस्था और प्रगाढ़ निष्ठा में क्या सचमुच ही इतने तुच्छ विचारों का है कि यह सब कुछ मां का मुंह देखकर ही किया करता था? उसका गंगा-स्नान, उसका चोटी रखना, उसका सब काम, सारे अनुष्ठान भले ही झूठे और आडम्बर ही क्यों नहीं हों फिर भी वह अपने प्रति किए स्व मजाकों और आक्रमणों को सहकर उनको बेकार करके अटल ही बना रहा। इसे क्या अपूर्व के स्थिर मन का प्रमाण माना जा सकता है?

फिर आज वही मनुष्य बर्मा में आकर ऐसा कैसे हो गया? और इतने दिनों तक उसकी दुर्बलता कहां छिपी रही थी? - सव्यसाची से इसका उत्तर पूछने को तत्पर होते हुए भी कितनी ही बार वह पूछ नहीं पाई। केवल कौतूहल के कारण ही नहीं बल्कि अंतर की व्यथा के बीच से ही उसने कई बार सोचा है कि इस संसार में जो कुछ भी जाना जा सकता है, वह सभी भैया जानते हैं। इसीलिए इस समस्या का समाधान वह ही कर देंगे। केवल संकोच और लज्जा के कारण ही वह अपूर्व के संबंध में उनसे कुछ पूछ ही नहीं सकी है।

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