ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
कुछ पल रुककर वह कहने लगे, विदेशी राजा की जेल में अगर आज तलवलकर को मर जाना पड़े तो परलोक में खड़े रहकर यहां अपनी पत्नी और कन्या को दर-दर भीख मांगते देखकर उसकी आंखों से आंसू गिरेंगे ही - लेकिन विश्वास रखो, देशवासियों के विरुद्ध वह भगवान से कोई भी शिकायत नहीं करेगा। मैं उसे पहचानता हूं। लज्जा से उसके मुंह से ऐसी बात भी न निकलेगी।
भारती ने अस्फुट स्वर में कहा, उंह।
कृष्ण अय्यर बंगला नहीं बोल सकता था। लेकिन बीच-बीच में समझ लेता था। गर्दन हिलाकर बोला, ऐस-ट्रू.....।
डॉक्टर ने कहा, हां, यही तो सच है। यही तो क्रांतिकारियों की चरम शिक्षा है। रोना किसके लिए? शिकायत किससे करें? अगर कभी तुम यह सुनो कि भैया को फांसी हो गई तो समझ लेना कि विदेशियों की आज्ञा से उसी के देश के किसी आदमी ने उसके गले में फांसी लगा दी है। कसाई खाने में कटे बैलों का मांस बैल ही ढोकर लाते हैं। इसके लिए फिर शिकायत कैसी बहिन?
भारती बोली, भैया, यही तो तुम लोगों के कर्मों के परिणाम हैं।
डॉक्टर बोले, यह क्या तुच्छ परिणाम हैं भारती? मैं जानता हूं कि देश के लोग इसका मूल्य नहीं समझेंगे। शायद मजाक ही उड़ाएंगे। लेकिन जिसे यह ऋण दमड़ी-छदाम तक का हिसाब करके चुकाना पड़ेगा उसके मुंह पर हंसी सहज ही में नहीं आएगी। फिर बोले, भारती, स्वयं ईसाई होकर तुम अपने ही धर्म की बात भूल गईं। ईसा मसीह का खून बहाना क्या व्यर्थ हुआ था? यही तुम्हारा विचार है?
सभी चुप बैठे रहे। डॉक्टर ने फिर कहा, तुम लोग तो जानते हो-व्यर्थ नर हत्या का मैं कभी भी पक्षपाती नहीं रहा। उसे मैं अपने सम्पूर्ण अंत:करण से घृणा करता हूं। अपने हाथ से एक चींटी तक नहीं मार सकता। लेकिन आवश्यकता पड़ने पर....क्या कहती हो सुमित्रा?
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