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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


डॉक्टर ने पल भर उसके चेहरे की ओर देखकर कहा, अच्छा यही बात कह देना। बंगलादेश की एक भी लड़की अगर इसका अर्थ समझ जाए तो मैं उसी से धन्य हो जाऊंगा। यह कहकर उन्होंने अपना भारी बक्सा कंधे पर उठा लिया। उनके पीछे-पीछे सभी लोग उतर आए। भारती ने अंतिम चेष्टा करके कहा, जिसका देश का आयोजन विफल हो जाता है भैया, विदेश के आयोजन से उनका क्या होता है? जो लोग अंतरंग सुहृद थे वह एक-एक करके छोड़कर चले गए तो क्या तुम एकदम निस्संग- एकदम अकेले हो?

डॉक्टर ने स्वीकार करके कहा, ठीक, यही बात है। लेकिन आरम्भ भी तो अकेले ही किया था भारती! और विदेश में। लेकिन भगवान ने इतनी कृपा की कि मनुष्य को अपनी इच्छानुसार छोटी-बड़ी दीवारें बनाकर, अपनी पृथ्वी को हजारों कारागारों मे परिवर्तित कर डालने का कोई उपाय नहीं रखा है। उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम-जितनी दूर तक दृष्टि जाती है विधाता का राजमार्ग एकदम खुला हुआ है। उसको अवरुद्ध कर रखने का षडयंत्र मनुष्य की पहुंच के बाहर की बात हो गई है। अब तो एक छोर का अग्निकांड दूसरे छोर तक चिंगारियां उड़ा ही ले आएगा। भारती-वह तांडव देश-विदेश की सीमा नहीं मानेगा।

लेकिन इधर रुद्र के सच्चे तांडव ने कमरे के बाहर उस समय कैसी भयंकर मूर्ति धारण कर ली थी - अंदर रहकर इसका किसी को ख्याल ही नहीं था। बिजली की चमक, मूसलाधार वर्षा, तूफ़ानी हवा और वज्रपात - मानो एकदम प्रबल रूप में आरम्भ हो गया था।

डॉक्टर ने किवाड़ की चटकनी ज्यों ही खोली, एकाएक वर्षा की तेज बौछार भीतर आ घुसी जिससे सभी भीग गए। बत्ती बुझ गई। सभी चीज़ें उलट-पलट गईं और पलक झपकते घर और बाहर सब कुछ अंधकार से एकाएक हो गया।

डॉक्टर ने पुकारा, सरदार जी।

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