| ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
जैसे कोई अटूटा बन्धन चलते हुए उन कदमों के चिन्हों को मिला रहा हो। 
एक क्षण के लिए लगा था मानों यह दुनिया केवल आग ही नही है, कहीं पर फूल भी हैं, औऱ उनकी कोमलता भी है, गुँचों की सुन्दरता भी है। 
बड़ा अजीब लगा था। 
दिल आप ही आप कंपकपा उठा। 
यह दिल कितना पागल है। कभी कुछ पाया नहीं न। 
कहीं से भी प्यार मिला नहीं न। 
जरा से स्नेह को बहार समझ लेता है। 
यह नादान दिल जो दुनियाँ के ऊँच-नीच से बिल्कुल बेखबर है। 
अच्छा लग रहा था, इसीलिए सारे आँसू पीछे धकेल कर स्वप्न देखने लगी थी-एक खूबसूरत औऱ प्रभावशाली मर्द के, एक साथ के, एक घर के, एक आँगन के, अपने अधिकार के अपनी सेवा के - अपने प्यार के - अपने त्याग के....। 
परन्तु वह क्षण तो कितनी जल्दी बीत गया। 
सुबह की आभा आकाश मे अपना नूर बिखेर भी न पायी थी कि सब समाप्त हो गया। 
फेरे हो गये। 
			
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