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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


आज तो यों लगता था मानों जीवन से सार सम्बन्ध एकदम टूट से गये हैं।

आज तक जो कुछ जाना, जो कुछ चाहा, जो कुछ सोचा, समझा, जिस भी चीज की इच्छा की, अपना बनाया--सभी एक छनाके से छिने जा रहे थे और यूं लग रहा था मानों आंचल के सारे तारे इधर-उधर शून्य में बिखर गये हैं।

औऱ आकाश में घुप्प अंधेरा छा गया है।

औऱ धरती के सारे फूल सूख गये हैं।

औऱ सारी कलियाँ रुठ गयी हैं।

और सारे चिराग बुझ गये हैं।

और वह कयामत की तीव्र और ठन्डी हवाओं में आ घिरी है।

शरीर रह-रह कर काँप रहा है औऱ आँसू धरती के स्रोत की तरह उबल-उबल कर सारे अस्तित्व को उथल-पुथल किये दे रहे हैं।

हाय, यह कैसे भाव हैं? यह कैसा एकाकीपन है? यह कैसी शून्यता है? यह कैसा अधंकार है?

उससे तो कहा गया था कि उसे उजाले के हवाले किया जा रहा है।

उसे तो विश्वास दिलाया गया था कि उसका अब जीवन एक नया पन्ना पलट रहा है और यह पन्ना अत्यन्त सुनहरा, प्रज्ज्वलित औऱ आकर्षक है।

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