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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


हाय, हाय। वह एक-एक को कैसे दिलासा दे?

एक-एक से क्या कहे?

एक-एक से कैसे मिले?

उसने मन ही मन में अपने हाथ जोड़ लिए है। जबान मूक है पर मन ही मन में गुनगुना रही हैं? "अलविल, अलविदा मेरे साथियो, मेरे दुख-सुख के शरीको, अब जाती हूँ। जीवित रही तो आऊँगी। आ सकी तो आऊँगी।

अब मुझे जाने दो, हिम्मत दों, काँपते शरीर को आगे बढ़ने की प्रेरणा दो।

कहीं ऐसा न हो रास्ते में ही शूल हो कर गिर पडूँ।

राह बहुत कठिन है।

अलविदा....अलविदा"

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जीजा जी के पैरो को छूकर बह वह बिलख पडी़।

शरीर के सारे धारे वह निकले।

"आह मेरे भगवान यह कैसा बिछोह है? अपने आप को कैसे सँभालूँ। कैसे सहन करूँ? इन पैरों ने मुझे हमेशा पनाह दी। इन पैरों में बाप का सुख पाया। भाई का प्यार पाया।

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