लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

12 पाठक हैं

भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


कहां गये तुम्हारे वे दावे?

सुनो ! सुनो, मेरे अस्तित्व का कण-कण आंसू बन कर आज तुम्हें बुला रहा है।

हां, अब तो तुम्हारे बिना रह पाऊंगी नहीं। सच कहती हूँ। हाथ जोड़कर विनती करती हूँ ज्यादा नहीं तो एक-आध दिन के लिए आकर अपनी इस पुजारिन के आंसू पोंछ जाओ।

आओ..... आओ, राधा के प्रियतम..... मेरे कन्हैया.... आओ.... आओ....

बिरहन
सुधा


0

मेरे जीवन के मालिक,

यह रैन अंधेरी औऱ मेरी नन्हीं सी जान।

यह बैरन रातें आती ही क्यों हैं?आस पास इतना सन्नाटा, इतनी खामोशी, स्तब्ध्तता। इतना अकेलापन, कोई भी तो नहीं होता साँय-साँय करती हवाये चारों ओर से घेरे रहती हैं औऱ मैं इस चारों ओर के सन्नाटों औऱ अँधेरों में घिरी रोती रहती हूँ।

तुम्हें याद करती रहती हूँ जागती रहती हूँ।

परन्तु तुम....निर्दयी.....कठोर..... हाँ.....हाँ....इन आँसुओ को कैसे रोकूँ? इन अँधेरों से अपनी अपनी जान कैसे बचाऊँ? ये अँधेरे तो मुझे निगलने के लिए बढ़ते आ रहे हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book