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प्रेरक कहानियाँ

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :35
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9712

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मनोरंजक और प्रेरणाप्रद बोध कथाएँ

 

4. अपराध-स्वीकृति


एक मन्त्री महोदय किसी जेल का निरीक्षण करने गये। जेल में सजा भुगत रहे प्रत्येक कैदी से अत्यन्त आत्मीयतापूर्वक मन्त्री महोदय ने यह पूछा कि उसे किस अपराध के कारण वहाँ आना पड़ा।

किसी कैदी ने कहा - 'मैं निरपराध हूँ, किन्तु आपसी रंजिस के कारण यहाँ आना पड़ा।' किसी ने कहा - 'पुलिस का दरोगा मुझसे जलता था, उसने झूठा केस बनाकर मुझे फँसा दिया।' किसी ने कहा - 'गवाहों के बयानों के कारण मैं सजा भोग रहा हूँ, मैं बिल्कुल निर्दोष हूँ।'

हाँ, एक कैदी ने अवश्य यह कहा - 'मान्यवर! मेरी सजा उचित ही हुई है, इसके लिए मैं स्वयं ही दोषी हूँ, कोई अन्य नहीं।'

'ऐसा क्या काम किया था तुमने?'

भूख बर्दाश्त न कर पाने के कारण मैंने एक धनी आदमी के यहाँ चोरी की थी। पकड़ा गया और एक चोर को जहाँ आना चाहिए था, वहाँ आ पहुँचा। काश ! चोरी के स्थान पर कठिन परिश्रम करके मैंने रोटी पैदा की होती! मैं बहुत बुरा आदमी हूँ, सचमुच बहुत बुरा!'

मन्त्रीजी ने जेलर से कहा-'जेलर महोदय! आपने इतने निर्दोष, निरपराध और भले लोगों के बीच इस बुरे आदमी को क्यों रखा हुआ है? इसे तुरन्त जेल से बाहर करो।'

मन्त्री के व्यंग्य-कथन का आशय समझकर जेलर ने उस कैदी को रिहा कर दिया।

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