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श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719

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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


“नाराज क्यों होंगी, वरन् हँसने लगीं। राजलक्ष्मी ने दीदी से कहा, अगले जन्म में हम दोनों बहिनें एक ही माँ के पेट से जन्म लेंगी। पहले मैं पैदा होऊँगी और तुम बाद में। तब दोनों बहिनें माँ के हाथ से एक ही पत्तल भर खायेंगी। उस समय यदि जात नष्ट होने की बात कहोगी तो माँ कान मल देंगी।”

सुनकर खुश होकर सोचा, अब ठीक हुआ। राजलक्ष्मी को बात करने में अभी तक कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं मिला था। पूछा, “क्या जवाब दिया?”

पद्मा ने कहा, “राजलक्ष्मी दीदी भी सुनकर हँसने लगीं। कहने लगीं, माँ क्यों दीदी, तुम तो बड़ी बहन होगी ही, स्वयं कान मल देना। छोटी की इतनी हिमाकत किसी तरह बर्दाश्त न करना।”

प्रत्युत्तर सुनकर चुप हो गया। मन ही मन प्रार्थना करता रहा कि कमललता इसके भीतरी अर्थ को न समझ सके।

जाकर देखा कि मेरी प्रार्थना मंजूर हो गयी है। कमललता ने उस बात पर कोई ध्या्न नहीं दिया, बल्कि इस अमल को न मानकर ही इस बीच दोनों में खूब मेल हो गया है।

शाम की गाड़ी से बड़े गुसाईं द्वारिकाप्रसाद आ गये और उनके साथ और भी कई बाबाजी आये। सर्वांग में छापों का परिमाण और वैचित्र्य देखकर सन्देह न रहा कि ये भी अवहेलना के पात्र नहीं हैं। बड़े गुसाईं मुझे देखकर बहुत खुश हुए किन्तु उनके साथियों ने मेरी कोई परवाह न की। परवाह करनी भी न चाहिए, क्योंकि, सुना गया, उनमें से तो एक तो ख्यातिप्राप्त कीर्त्तन-कर्त्ता हैं और दूसरे मृदंग बजाने में उस्ताद।

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