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संभाल कर रखना
संभाल कर रखना
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
17
हदे-निगाह में दिखता कहीं ज़रूर न था
हदे-निगाह में दिखता कहीं ज़रुर न था।
नज़र से दूर भले था वो दिल से दूर न था।।
ख़ुदी पे नाज़ तो था पर मुझे ग़ुरूर न था,
मुझे शऊर था, मैं कोई बेशऊर न था।
मैं बँट गया था मगर बच गया बिखरने से,
चिटख गया तो था आईना चूर-चूर न था।
लिपट के शम्अ से ख़ुद अपनी जान तूने दी,
तेरा कुसूर था, उसका कोई कुसूर न था।
ग़रज़ थी क्या कोई मुझको संभाल कर रखता,
मैं इक हक़ीर सा पत्थर था कोहेनूर न था।
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संभाल कर रखना
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