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			 ई-पुस्तकें >> सिंहासन बत्तीसी सिंहासन बत्तीसीवर रुचि
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सिंहासन बत्तीसी 32 लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है, जिसमें विक्रमादित्य के सिंहासन में लगी हुई 32 पुतलियाँ राजा के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। उन्हें भारतीय इतिहास में प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी शासक होने का गौरव प्राप्त है। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 लोक कथाओं का संग्रह है जिसमें सिंहासन में लगी हुई 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
संस्कृत भाषा में इसे विक्रमचरित सिंहासन द्वात्रिंशिका के नाम से जाना जाता है।
कथा की भूमिका
इन कथाओं की भूमिका भी कथा ही है जो राजा भोज की कथा कहती है। ये ३२ कथाएँ ३२ पुतलियों के मुख से कही गई हैं जो एक सिंहासन में लगी हुई हैं। यह सिंहासन राजा भोज को विचित्र परिस्थिति में प्राप्त होता है। एक दिन राजा भोज को मालूम होता है कि एक साधारण-सा चरवाहा अपनी न्यायप्रियता के लिए विख्यात है, जबकि वह बिल्कुल अनपढ़ है तथा पुश्तैनी रुप से उनके ही राज्य के कुम्हारों की गायें, भैंसे तथा बकरियाँ चराता है। जब राजा भोज ने तहक़ीक़ात कराई तो पता चला कि वह चरवाहा सारे फ़ैसले एक टीले पर चढ़कर करता है। राजा भोज की जिज्ञासा बढ़ी और उन्होंने खुद भेष बदलकर उस चरवाहे को एक जटिल मामले में फैसला करते देखा। उसके फैसले और आत्मविश्वास से भोज इतना अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने उससे उसकी इस अद्वितीय क्षमता के बारे में जानना चाहा। जब चरवाहे ने जिसका नाम चन्द्रभान था बताया कि उसमें यह शक्ति टीले पर बैठने के बाद स्वत: चली आती है, भोज ने सोचविचार कर टीले को खुदवाकर देखने का फैसला किया। जब खुदाई सम्पन्न हुई तो एक राजसिंहासन मिट्टी में दबा दिखा। यह सिंहासन कारीगरी का अभूतपूर्व रुप प्रस्तुत करता था। इसमें बत्तीस पुतलियाँ लगी थीं तथा कीमती रत्न जड़े हुए थे। जब धूल-मिट्टी की सफ़ाई हुई तो सिंहासन की सुन्दरता देखते बनती थी। उसे उठाकर महल लाया गया तथा शुभ मुहूर्त में राजा का बैठना निश्चित किया गया। ज्योंहि राजा ने बैठने का प्रयास किया सारी पुतलियाँ राजा का उपहास करने लगीं। खिलखिलाने का कारण पूछने पर सारी पुतलियाँ एक-एक कर विक्रमादित्य की कहानी सुनाने लगीं तथा बोली कि इस सिंहासन, जो कि राजा विक्रमादित्य का है, पर बैठने वाला उसकी तरह योग्य, पराक्रमी, दानवीर तथा विवेकशील होना चाहिए। ये कथाएँ इतनी लोकप्रिय हैं कि कई संकलनकर्त्ताओं ने इन्हें अपनी-अपनी तरह से प्रस्तुत किया है। सभी संकलनों में पुतलियों के नाम दिए गए हैं पर हर संकलन में कथाओं में कथाओं के क्रम में तथा नामों में और उनके क्रम में भिन्नता पाई जाती है।
सिंहासन बत्तीसी
कथाक्रम
- सिंहासन बत्तीसी 
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- पहली पुतली रत्नमंजरी
 - दूसरी पुतली चित्रलेखा
 - तीसरी पुतली चन्द्रकला
 - चौथी पुतली कामकंदला
 - पाँचवीं पुतली लीलावती
 - छठी पुतली रविभामा
 - सातवीं पुतली कौमुदी
 - आठवीं पुतली पुष्पावती
 - नौवीं पुतली मधुमालती
 - दसवीं पुतली प्रभावती
 - ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचना
 - बारहवीं पुतली पद्मावती
 - तेरहवीं पुतली चित्रलेखा
 - चौदहवीं पुतली सुनयना
 - पंद्रहवीं पुतली सुन्दरवती
 - सोलहवीं पुतली सत्यवती
 - सत्रहवीं पुतली विद्यावती
 - अट्ठारहवीं पुतली तारावती
 - उन्नीसवीं पुतली रूपरेखा
 - बीसवीं पुतली ज्ञानवती
 - इक्कीसवीं पुतली चन्द्रज्योति
 - बाइसवीं पुतली अनुरोधवती
 - तेइसवीं पुतली धर्मवती
 - चौबीसवीं पुतली करुणावती
 - पच्चीसवीं पुतली त्रिनेत्री
 - छब्बीसवीं पुतली मृगनयनी
 - सत्ताइसवीं पुतली मलयवती
 - अट्ठाइसवीं पुतली वैदेही
 - उनतीसवीं पुतली मानवती
 - तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी
 - इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या
 - बत्तीसवीं पुतली रूपवती
 
 
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