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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728

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समकालीन कहानी संग्रह

नौ महीने पेट में रखा, स्तनों का दूध किसने पिलाया, यह तो सोचने पर भी याद नहीं आता लेकिन दादी ने रोज-रोज मक्खन, मिसरी का प्रसाद, दूध की खीर बनाकर छकाया, वह सब कुछ चलचित्र की भांति हर समय मेरे सामने घूमता रहता है। शायद यही कारण है कि दादी की गोद में गुजरा बचपन मुझे ममत्व के सूत्र से बांधे रहता है।

ले तेरी दादी का खत आया है- माँ की आवाज के साथ उन्हें सामने खड़ा देखकर मैं चौक गया। ‘मेरी दादी का खत’ कैसा अजनबीपन और उपेक्षा का भाव था उनके चेहरे पर। ‘क्या दादी उनकी कुछ नहीं लगती, क्या उनका कोई संबंध नहीं है?’ मन की बात को मैं अंदर ही पी गया। हाथ बढ़ाकर चुपचाप खत ले लिया क्योंकि मैं जानता था एक शब्द भी बोलना माँ की जली कटी महाभारत सुनना होगा।

लेकिन माँ वहीं खड़ी रही।

‘विभा की दवाई के लिए तो तेरे पास दस रूपये नहीं और उस बुढ़िया के पास भेजने के लिए कहाँ से आ गए?

‘वो तो मेरा फर्ज है, माँ उन्होंने मुझे पढ़ाया-लिखाया है, मेरा पालन-पोषण किया है, तो क्या मैं उनके लिए इतना भी न करूं ...’ मैं कुछ उत्तेजित सा हो गया था।

"और मैंने तुझे अपना पेट फाड़कर पैदा किया?"

‘लेकिन माँ उनके लिए तो कुछ भी करने वाला कोई नहीं है, उनके तो आगे और पीछे बस मैं ही हूँ।"

‘और मेरे आगे-पीछे?’

‘पिता जी हैं, दीनू है।’

‘तो तुझ पर हमारा कोई अधिकार नहीं, उस बुढ़िया ने तुझे चार दिन अपने पास रख कर जादू कर दिया होगा, मैं सब जानती हूँ उसके चिलत्तरों को, जरूर उसने तुझपर जादू-टोना कर दिया है’ माँ बड़बड़ाती हुई चली गई।

पहले मैं दादी के पास पांच सौ रूपये भेजता था, वैसे शायद उन्हें एक पैसे की भी आवश्यकता न थी, उनके पास इतना सब कुछ था कि वह अपनी पूरी जिंदगी में किसी प्रकार भी खा-पहन, दान-पुण्य कर सकती थी। परन्तु जब भी मेरा मनीआर्डर जाता तो वे खुशी से झूम जाती और घूम-घूम कर सारे मोहल्ले में मनीआर्डर की खबर दे आती। उनका लड़का उसका कितना ख्याल रखता है, यह बात लोगों को बताते हुए दादी को बहुत आत्म-संतोष होता था। यही सोचकर पिछले मास से उसने पूरे एक हजार रूपये का मनीआर्डर कराना आरम्भ कर दिया था।

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