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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728

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समकालीन कहानी संग्रह

मुख्य अध्यापक ने सहजता से समझाया - देखिए हमारा विरोध आपसे हो सकता है परन्तु विद्यार्थी से नहीं। यदि आपको विश्वास नहीं आता तो हम आपके बेटे के पेपर दिखवा सकते हैं......

‘हां मैं अपने बेटे के पेपर देखना चाहता हूँ- पिता अब भी तैश में भरे थे। मुख्य अध्यापक ने उन्हें एक अध्यापक के साथ परीक्षा-कक्ष में भेज दिया। बेटे को पिता के साथ जाना तो पड़ा परन्तु वह थर-थर कांप रहा था,’

परीक्षा प्रमुख ने गणित का पेपर निकाल कर दिखाया, जीरो अण्डा, पेपर में कुछ लिखा ही नहीं था जिसमें अंक दिए जा सकें। ऐसे ही अंग्रेजी का पेपर एकदम कोरा। अन्य पेपर देखने से पिता जी ने ही मना कर दिया।

भयानक, क्रोध के साथ पिता ने बेटे को समुख खड़ा कर लिया - क्या ये दोनों पेपर तुम्हारे हैं...?

‘जी’ सहमे हुए बेटे ने सिर हिला दिया’।

ऐसा क्यों किया तुमने?

बेटा झूठ नहीं बोल सका। कांपती आवाज में उसने बताया - आपने जबरदस्ती मेरा दाखिला इस स्कूल में कराया। मैं इस स्कूल में नहीं पढना चाहता। मुझे मालूम है यहां फेल बच्चे को दाखिला नहीं मिलता इसलिए मैंने पेपर कोरा छोड़ दिया......।

पिता का चेहरा फक्क रह गया। उसका हाथ पकड कर वे घसीटते हुए उसे बाहर खेंच लाए। मुख्य अध्यापक कक्ष की ओर जाने का साहस न रहा इसलिए वे तेजी से स्कूल का मुख्यद्वार पार कर गए।

 

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