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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728

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समकालीन कहानी संग्रह

उसी घंटी में गोलियां खिलाने की बात, पानी पीने के स्थान से, बाथरूम से, मिड-डे किचन से, गुजरती हुई आग की भांति सारे स्कूल में फैल गयी। कई छुट्टी मास्टरों ने भी इसका विस्तार किया। जब तक मुख्याध्यापक संभलते स्कूल के आधे छात्र घर भाग चुके थे और आधे के आधे खेल के मैदान में भागदौड़ कर रहे थे। मुख्याध्यापक को बच्चों पर चिल्लाते देख सभी अध्यापक बरामदे में आ गए।

‘दरियाव सिंह एक भी बच्चे को बाहर मत निकलने दो’- उन्होंने पी.टी.आई. को आदेश दिया।

‘जी, हैडमास्टर साहब, इस नौंवी कक्षा को मैं संभालता हूँ..... कहते हुए वे तेजी से नौवी कक्षा में घुस गए। नौंवी कक्षा से अभी-अभी अंग्रेजी अध्यापक रमन जी निकले थे। इसलिए बाहर क्या चल रहा था बच्चों को कुछ नहीं मालूम।’ दरियाव सिंह ने पिछले दरवाजे की बाहर से कुंडी लगवा दी तथा एक दरवाजे पर खुद खड़े हो गये। हैडमास्टर साहब जी चपरासी के साथ आयरन टेबलेट और पानी लेकर उसी कमरे में आ गए। सभी अध्यापकों को भी उन्होंने अपनी-अपनी कक्षा में जाने का आदेश दिया।

कक्षा में खड़े-खड़े मुख्याध्यापक ने बच्चों को आयरन टेबलेट खाने के लाभ बताये और चपरासी तथा पी.टी.आई दरियाव सिंह के द्वारा अपने सामने एक-एक बच्चे को गोली खिलाने का आदेश दिया। सारे छात्रों के चेहरों से हवाइयाँ उड़ रही थी परन्तु किसी छात्र में इतना साहस न था विरोध कर सके।

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