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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728

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समकालीन कहानी संग्रह

पी.टी.आई दरियाव ने गंभीर मुद्रा में कहना आरम्भ किया - ‘हैडमास्टर साहब बुरा मत मानना, मेरे पास एक सुझाव है, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।’ सभी अध्यापकों का ध्यान उस पर केंद्रित हो गया।

मुख्याध्यापक ने उत्साहपूर्वक कहा- दरियाव सिंह जी अपना सुझाव अवश्य बताओ, ये गोलियां तो गले में सांप की तरह लटक रही हैं।

मेरी समझ में एक बात जमी है- ‘सरकार तो इन गोलियों को खिलाकर छोडेगी, बच्चे इनको खाएगें नहीं और हमको दोनों की बात रखनी पड़ेगी। एक ही रास्ता बचा है जो बच्चे स्वेच्छा से गोली खाना चाहें, खिला दें बाकी गोलियों को प्रतिदिन के हिसाब से पोटली बांधकर पत्थर के साथ तालाब में फैंक दो।’

सुनकर सारे अध्यापक सोच में डूब गए। मुख्याध्यापक को उनकी बात जंच गयी। बात तो पी.टी.आई. की ठीक है, बोलो सारे अध्यापक सहमत हो तो.....?’

सबने गर्दन हिलाकर सहमति प्रदान कर दी। तो दरियाव सिंह ये आपका ही गांव है इसलिए आप ही इस प्रोजैक्ट को अपने हाथ में ले लो...।

‘जो बोले वही कुण्डा खोले...... खैर सब भाईयों के लिए मैं इस काम को कर दूंगा आप इन आयरन की गोलियों से निश्चिंत हो जाओ।’ अगले ही दिन से खुशी-खुशी बच्चों को गोलियाँ खिलाई जाने लगीं। जिला शिक्षा अधिकारी को रिपोर्ट भेजी जाने लगी। सबकी नजरों में मुख्याध्यापक की साख बढ़ गयी। आयरन की गोलियों के विषय में अन्य किसी अध्यापक को कठिनाई आती तो सभी अधिकारी मुख्याध्यापक के पास भेज देते और मुख्याध्यापक उनकी मुलाकात पी.टी.आई. दरियाव सिंह से करा देता।

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