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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''जी हां, हम फ़ौजियों की ज़िन्दगी खानाबदोशों जैसी है। आज यहां, कल वहां। मां को साथ-साथ लिये कहां-कहां फिर सकता हूं। और फिर मां को कोई तकलीफ भी नहीं है। पास-पड़ोस के लोग बहुत ध्यान रखते हैं, बिलकुल रिश्तेदारों की तरह।''

''घर में बहू ले आइए तो उनका बुढ़ापा संवर जाएगा।'' सलमा ने मुस्कराते हुए कहा।

सलमा की बात सुनकर रणजीत मुस्करा पड़ा और बोला-''आपके ख़यालत भी मेरी मां से मिलते हैं। वह भी अक्सर यही कहा करती हैं।''

''तो फिर देर क्यों? उनकी खुशी पूरी कर दीजिए।''

''हिम्मत नहीं होती। देखिए न, इसी जंग में अगर मैं मारा जाता या फिर हाथ-पैर ही गोला-बारूद से उड़ जाते तो...।''

''अल्लाह न करे, आपको कुछ हो जाये।'' सलमा ने जल्दी से उसकी बात काट कर कहा और फिर मुस्कराकर बोली-''अब आप अपने वतन पहुंचते ही शादी कर लीजिएगा। लड़कियों को ज्यादा दिनों तक तरसाना अच्छा नहीं होता भाईजान।''

''बहुत अच्छा। लेकिन आप आयेंगी मेरी शादी में?''

''क्यों नहीं। आप बुलायें और हम न आयें।''

''चलिए जिंदगी में एक भाई और भाभी की कमी थी, वह भी पूरी हो गई।'' रणजीत ने कहा।

''लेकिन हमारी होने वाली भाभी का नाम तो अभी तक आपने बताया नहीं।'' सलमा ने'पूछा।

''पूनम।''

''वाह, कितना प्यारा नाम है...सूरत भी चांद जैसी होगी।''

''इसका अंदाज़ा आप खुद देखकर लगाइयेगा।'' ''उनकी याद तो आती होगी?'' सलमा ने फिर पूछा।

''यादों का सहारा लेकर ही तो इतने दिनों तक जी लिया हूं।''

सलमा ने कनखियों से रणजीत को देखा। उसकी आंखों में मीठी यादों की परछाइयां तैरने लगी थीं। उसकी पलकें कुछ भीग गयी थीं। वह खाने में व्यस्त था, किंतु उसकी कल्पना न जाने कहां-कहां विचर रही थी।

कुछ देर के लिए कमरे में निस्तब्धता छा गई।

खाना समाप्त होते ही रशीद ने सिगरेट का डिब्बा उसकी ओर बढ़ाया।

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