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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''आत्महत्या...!'' पूनम के मुंह से हल्की-सी चीख़ निकल गई।

''बहुत अच्छा हुआ...उसका यही अंत होना चाहिए था।'' रुख़साना ने घृणा से होंठ सिकोड़ते हुए कहा।

पूनम को उसका यह ढंग पसंद नहीं आया और उसे समझाते हुए बोली-''कुछ भी हो वह तुम्हारा प्रेमी था...तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए...हिन्दुस्तानी नारी तो एक बार जिसकी हो जाती है, उस पर प्राण तक न्यौछावर कर देती है।''

''मैं उन बेवकूफ़ औरतों में से नहीं हूं। अब मैंने फ़ैसला कर लिया है कि कभी मोहब्बत का रोग नहीं लगाऊंगी...ज़िन्दगी मर्दों की तरह ऐश से गुज़ारूंगी...आज इसकी बाहों में तो कल उसकी आग़ोश में।''

''छि: छि: छि:... कैसी बहकी-बहकी बातें करती हो।'' पूनम ने घृणा से माथे पर बल डालते हुए कहा।

''अभी कहां बहकी हूं डीयर...पहला गिलास भी तो खाली नहीं हुआ।'' रुख़साना ने कहा और फिर एक ही सांस में गिलास खाली करके मेज़ पर रख दिया।

तभी रुख़साना को उस नौजवान ने पुकारा, जिसका नाचते हुए, उसने चम्बन ले लिया था और रुख़साना 'एक्सक्यूज मी' कहकर उस नौजवान की मेज़ पर चली गई। यह शायद रुख़साना का नया आशिक़ था।

रशीद और पूनम ने संतोष की सांस ली। रशीद ने धीरे से करा-''Poor Frustrated Soul'' और फिर वे दोनों जल्दी-जल्दी खाना खाने लगे।

खाना समाप्त हुआ। रशीद ने जल्दी से बिल चुकाया और इस विचार से कि कहीं रुख़साना फिर आकर बोर न करे, वह उठकर बाहर जाने लगा। रुख़साना उस नौजवान के पास बैठी बातें कर रही थी। उसने कनखियों से उन्हें बाहर जाते देखा और उनकी शीघ्रता देखकर मुस्करा दी।

वहां से रशीद और पूनम होटल के बग़ीचे में चले आए। जहां घास में छिपे रंगीन बल्ब एक अनोखी मनोहर छटा प्रस्तुत कर रहे थे। आस-पास खिले फूलों की फैली सुगन्ध ने उन्हें विभोर सा कर दिया। हाल में उत्पन्न हुई घुटन कुछ ही क्षण में हवा के झोंकों ने समाप्त कर दी। पूनम ने रशीद का हाथ अपने हाथ में ले लिया और उसके साथ टहलने लगी...इस रोमांचमयी वातावरण से उसे उन्माद की-सी अनुभूति होने लगी।

कुछ देर बाद रशीद ने अनुभव किया कि पूनम जो अपने-आपको एक सीमित फ़ासले पर रखती थी, इस समय बात-बात पर रशीद से चिपकी जा रही थी। कभी वह उसके गले में बाहें डाल देती, कभी सीने से लग जाती...और रशीद उसके इस व्यवहार से बेचैन हुआ जा रहा था। आखिर जब पूनम अधिक ही खुल गई और जब उसकी सहन-शक्ति से दूर हो गई तो वह पूनम से कह उठा-''चलो...अब मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊं।''

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