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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

रुख़साना के होंठों पर जीवन में शायद पहली बार एक पवित्र-सी मुस्कराहट उभरी। अपराध स्वीकार करने के बाद अपना अतीत उसे कुछ उजाला-उजला-सा अनुभव होने लगा। उसने रशीद से केवल अपने अपमान का बदला ही नहीं लिया था, बल्कि एक नारी होने के नाते उसने दूसरी नारी के आंचल को कलंकित होने से बचा लिया था। अपना मन हल्का करके वह शांति से नाश्ता करने लगी।

नाश्ता करते हुए रुख़साना की दृष्टि अचानक बाहर काउंटर की ओर चली गई। सी० बी० आई का एक अफ़सर मिलिट्री पुलिस के दो सिपाहियों के साथ काउंटर पर खड़ा कुछ पूछ रहा था। रुख़साना ने उसके मुंह से 'लिली' का शब्द सुना और क्षण भर के लिए चौंक उठी। लेकिन दूसरे ही क्षण शांति से नाश्ते में व्यस्त हो गई।

दोनों सिपाहियों को बाहर ही छोड़कर अफ़सर डाइनिंग रूम में आया और चारों ओर देखकर रुख़साना के मेज़ के पास आकर बोला-''रुख़साना आप ही हैं न?''

''जी...।'' रुख़साना ने उससे आंखें मिलाते हुए बड़ी शांत मुद्रा में उत्तर दिया।

''मुझे आपसे कुछ ज़रूरी काम है।''

''जानती हूं...मेरा वारंट है...लेकिन आप बैठिये न...कुछ चाय...काफी लीजिए।''

''नो थैंक यूं...।'' अफ़सर ने खड़े ही खड़े उत्तर दिया।

''तो मुझे नाश्ता खत्म करने की इजाज़त दीजिए।''

''आफ़ कोर्स...आफ़ कोर्स...।'' अफ़सर ने कहा और कुर्सी खींचकर रुख़साना के सामने बैठ गया।

दिल्ली में जो कुछ हो रहा था, उन सब बातों से अनभिज्ञ रशीद मनाली जाने वाली सड़क पर प्राइवेट टैक्सी में बैठा भविष्य के प्लान बना रहा था। मां से मिलने के बाद, जल्दी से जल्दी वह सारे सैनिक भेद और महत्वपूर्ण नक्शे, जो उसने बड़े परिश्रम से, प्राणों पर खेल कर प्राप्त किए थे, पाकिस्तान पहुंचा देगा। इस काम के सम्पूर्ण हो जाने के बाद अगर वह गिरफ्तार भी हो गया तो कोई चिन्ता नहीं, क्योंकि उसे मालूम था कि पाकिस्तान में कई खतरनाक हिन्दुस्तानी जासूस पकड़े हुए क़ैद थे... उसकी सरकार उनके बदले में उसे छुड़ा लेगी।

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