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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

17

रणजीत की मां ने संदूक खोला और शादी-ब्याह के कपड़े देखने लगीं। इस समय उन्हें एक अनोखा आत्मिक सुख अनुभव हो रहा था। उन्होंने एक कीमती साड़ी खोली और मन-ही-मन-कल्पना करने लगीं कि पूनम इसे पहनकर कैसी लगेगी...उनकी आंखों के सामने दुल्हन बनी पूनम का मुखड़ा उभर आया और वह मुस्करा पड़ी। फिर उन्होंने ग़रारे, फ्राक और दोपट्टे का जोड़ा उठाकर देखा और अनायास सलमा की याद उन्हें तड़पा गई...उनकी दूसरी बहू जिसे उन्होंने साक्षात नहीं देखा था। मां की आंखें भीग गईं। अभी वह दोपट्टे से अपने आंसू पोंछ ही रही थीं कि बाहर गौरी की आवाज़ सुनकर चौंक पड़ी। गौरी भागती हुई अन्दर आई और बोली-''पूनम भाभी आई हैं।''

यह सुनते ही मां जैसे खुशी से पागल हो गई। वह तेज़ी से बाहर के कमरे में आई जहां पूनम हाथ में अटैची लिए खड़ी थी। मां को देखते ही पूनम ने आगे बढ़कर उनके चरण छू लिए। मां ने उसे आशीर्वाद देते हुए उठाया और प्यार से गले लगाते हुए बोली- ''अरे...तुमने आने की खबर तक नहीं दी।''

''अचानक प्रोग्राम बन गया मां जी।''

''तुम्हारे पिताजी अब कैसे हैं?''

''उसी तरह...पल में ठीक, पल में बीमार...अब आंटी को छोड़कर आई हूं उनके पास।'' पूनम ने घर में इधर-उधर झांकते हुए कहा। गौरी उसकी व्याकुलता को भांप गई और झट उसके हाथ से अटैची लेती हुई बोली-''भैया तो बाग़ में गए हैं भाभी...उन्हें मालूम होता तुम आ रही हो तो कभी न जाते...।''

''हां पूनम, आज रणजीत ने मुझे काम पर नहीं जाने दिया। इस बार जो घर लौटा है तो बिलकुल ही बदला हुआ है...पहले मेरा इतना ध्यान नहीं रखता था जितना अब रखने लगा है।'' मां ने स्नेह से कहा।

''हां भाभी...'' गौरी मां की बात का समर्थन करती हुई बोली, ''रात को अपने हाथ से भैया ने मांजी के सिर में तेल डाला और बहुत देर तक उनका सिर दबाते रहे?''

''और बहू...इस बार बिना शादी किये मैं उसे वापस न जाने दूंगी। पहले तो वह हमेशा की तरह अब भी टाल मटोल कर रहा था लेकिन रात मैंने उसे सहमत कर ही लिया है...अगले महीने की अठारह तारीख पक्की की है पुरोहित जी ने-उस दिन तेरी मांग में सिंदूर भर दिया जाएगा और मेरी एक बहुत बड़ी मनोकामना पूरी हो जाएगी।''

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