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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

सलमा का मस्तिष्क इस अचानक के आघात ने जैसे निष्क्रिय कर दिया हो...इस समय वह सोचने समझने की सब शक्ति खो चुकी थी।

तभी बाहर कुछ आवाज़ों ने उन्हें चौंका दिया। एक साथ कई जीप गाड़ियां उस मकान के सामने आकर रुकीं और एक सैनिक दस्ते ने मकान को चारों ओर से घेर लिया।

''वह लोग आ गए...।'' रशीद ने बाहर जीप गाड़ियों के रुकने की आवाज़ सुनते ही कहा।

सलमा एकाएक रशीद से लिपट गई और रुआंसी आवाज़ में बोली-''नहीं-नहीं...मैं उन्हें अंदर नहीं आने दूंगी...वह आपको गिरफ्तार नहीं कर सकते...देखिए आप खिड़की कूद कर पिछवाड़े से भाग जाइये।''

''पगली...।'' रशीद ने उसका सिर थपथपाकर कहा, ''भागकर कहा जाऊंगा फिर वह उसे अपने से अलग करके कमरे की बत्ती जलाता हुआ बोला, ''जाओ दरवाज़ा खोल दो...वरना वह लोग तोड़ डालेंगे।''

दरवाज़े पर निरन्तर ज़ोर-ज़ोर से दस्तक हो रही थी। रशीद ने स्वयं जाकर किवाड़ खोल दिया। कर्नल रज़ाअली और कुछ दूसरे मिलिट्री अफ़सर बंदूकें ताने सिपाहियों के साथ अंदर दाखिल हुए। सलमा भी पति के पीछे-पीछे बाहर आ गई थी रशीद ने आंख के इशारे से उसे अंदर जाने को कहा लेकिन सलमा को इस समय पर्दे का होश ही कहां था-

कर्नल रज़ाअली ने सिपाहियों को मकान की तलाशी का आदेश दिया तो रशीद कह उठा-

''जिसकी आपको तलाश है वह यहां नहीं है।''

''तो कहां है वह क़ैदी?'' रज़ाअली ने कड़ककर पूछा।

''अब तक वह बार्डर क्रास कर चुका होगा।''

''हूं...तो हमारा शक ग़लत नहीं था...तुमने दुश्मनों के साथ मिलकर अपने वतन से गद्दारी की है।''

''दुश्मनों से मिलकर नहीं कर्नल...अपने दिल से मज़बूर होकर।''

''जानते हो तुमने कितना बड़ा गुनाह किया है...खुदा और कानून तुम्हें कभी नहीं बख्शेंगे।''

''खुदा के दरबार में जब हाज़िर हूंगा तो इन्साफ़ हो ही जाएगा लेकिन कानून के दरबार में जो सजा भी मिलेगी उसे भुगतने को तैयार हूं।''

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