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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''अरे जाओ...ताकतवर है...'' मेजर सिंधु ने अपने गिलास में और व्हिस्की उड़लते हुए कहा-''अगर सरकार सीज़ फ़ायर स्वीकार करके हमारे हाथ रोक न देती तो हम उनका सारा घमंड तोड़कर रख देते।''

तभी कर्नल बेलीप्पा ने बीच में आते हुए कहा-''नाऊ लीव इट ब्वायज...यह लड़ाई तो चलती रहेगी। जब युद्ध नहीं होता, तो युद्ध की तैयारी होती है...इसी तैयारी को राजनीति में शांति कहते हैं। और इसी शांति के नाम पर चीअर्स...बाटम अप प्लीज़...।''

पार्टी समाप्त हुई, तब आधी रात हो चुकी थी। हाल अभी तक जगमगा रहा था। लड़ाई के ब्लैक आउट के बाद यह उजाला बड़ा भला लग रहा था। अधिकांश लोग घरों को लौट गए थे और जो बच गए थे, वे इस आशा से बार-बार घड़ी की सुइयां देख रहे थे कि शायद समय की गति रुक जाए और वह इसी उन्माद में, सारी दुनियां से बेखबर, अनंतकाल तक यहीं बैठे रहें।

रशीद दोस्तों की नज़रों से बचता हुआ मैस के बाहर आ गया। आसमान में घटाओं ने समां बांध रखा था। वातावरण काफ़ी ठंडा हो गया था। डल लेक का किनारा शांत और सुनसान था। डल का पानी एक विशाल काली चादर प्रतीत हो रहा था। वह सुनसान सड़क पर धीरे-धीरे पैदल चलने लगा। उसका यूनिट अधिक दूर नहीं था।

वह अभी कुछ दूर ही चला था कि पीछे से अचानक एक जीप गाड़ी आकर उसके पास रुक गई। रशीद चौंककर वहीं खड़ा हो गया और तिरछी दृष्टि से जीप के ड्राइवर को देखने लगा। ड्राइवर ने जेब से सिगरेट निकाला और लाइटर से जलाया। रशीद यह देखकर चौंक पड़ा कि सिगरेट जलाने से पहले ड्राइवर ने दो बार लाइटर जलाकर बुझाया था। यह हिंदुस्तान में पाकिस्तानी जासूसी का विशेष संकेत था। फिर भी अपनी संतुष्टि के लिए वह जीप गाड़ी के पास जाते हुए बोला-''कौन-सा सिगरेट पीते हो?''

''फ़ाइव...फ़ाइव...फ़ाइव (555)'' ड्राइवर ने धीरे से कहा।

''जीप का नम्बर?''

''एक्स फ़ाइव...फ़ाइव...फ़ाइव 'एक्स 555'।'' ड्राइवर ने कहा और साथ ही जेब से एक कार्ड निकालकर रशीद के हाथ में रख दिया। कार्ड पर भी एक्स फ़ाइव...फ़ाइव...फ़ाइव लिखा हुआ था।

रशीद ने अब भी सन्देहमयी दृष्टि से ड्राइवर को देखा तो वह झट बोल उठा-''किसी को शक न हो जाए मेजर...जल्दी लिफ्ट ले लीजिए।''

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