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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''घबराइए नहीं...मैं इसे अपने पास सुरक्षित रखूंगी।'' यह कहकर पूनम ने लाकिट फिर अपने बैग में रख लिया।

कुर्सियों से उठकर अब वे दोनों उन रंगीन बल्बों की रोशनी में झिलमिलाते फ़व्वारे के इर्द-गिर्द घूमने लगे। बातों का विषय बदल गया था। पूनम ने विस्तार से अपना दिन भर का कार्यक्रम बताया और रशीद ने अपनी ड्यूटी के दो-चार मन-गढ़ंत किस्से सुना दिये। वह पूनम से प्यार की बातें करने से घबराता था। जब भी पूनम भाव में आकर कोई प्यार की बात करने लगती, रशीद बड़ी चतुराई से उसे बदल देता।

शाम का धुंधलापन अंधेरे में परिवर्तित होने लगा था। आकाश में चांद निकल आया। पूनम नें उस झील में शिकारे द्वारा घूमने की इच्छा प्रकट की। परंतु रशीद ने यह कहकर टाल दिया कि उसे ग्यारह बजे से पहले ही हैड क्वार्टर लौट जाना है। जब से वह पाकिस्तान से लौटा है, कुछ बंदिशें बढ़ गई हैं।''

''तो छुट्टी क्यों नहीं ले लेते?'' पूनम ने इठला कर कहा।

''वह तो मिलने ही वाली हैं।''

''कब?''

''बस, कुछ-ही दिनों बाद...एक महीने की छुट्टी मिलेगी।''

''तब तक तो मैं यहां से जा चुकी हूंगी।''

''तो क्या हुआ? मैं तुमसे मिलने दिल्ली चला आऊंगा।''

''सच...!'' वह खुश होकर बोली।

''हां पूनम...इन सुन्दर सुहानी वादियों में तो चंद दिन साथ न गुज़ार सके, दिल्ली में तुम छुट्टी ले लोगी तो हम एक साथ ही मां के पास ही चलेंगे।''

''तो फिर रहा वचन...। दिल्ली पहुंच कर छुट्टी के लिए अप्लाई कर दूं?''

रशीद ने 'हां' में सिर हिला दिया और दोनों एक साथ मुस्करा पड़े। इससे पहले कि वे अगला प्रोग्राम निश्चित करते, जान और रुख़साना ने उन्हें आकर घेर लिया। रशीद ने उन दोनों का परिचय पूनम से कराया। जान ने पूनम को बताया कि वह कश्मीर में रह कर इन लोगों के बारे में एक पुस्तक लिख रहा है। लड़ाई आरम्भ होने के कारण उसका यह काम अधूरा रह गया था अब वह उसे पूरा कर रहा है। रुख़साना उसकी मंगेतर है और गांव-गांव उसके साथ जाकर नारियों के घरेलू जीवन को समझने में उसकी सहायता करती है। इसी संबंध में उसकी रणजीत से दोस्ती हो गयी थी।

''लेकिन कश्मीरी लोगों के जीवन से इन फ़ौजियों का क्या संबंध हो सकता है?'' पूनम ने अचानक जान और रणजीत की दोस्ती पर टिप्पणी करते हुए कहा।

''कश्मीर और मिलिट्री का तो एक ऐसा नाता जुड़ चुका है, जिससे हर कश्मीरी के जीवन पर कुछ असर पड़ा है। यह जंग....बार्डर के झगड़े...यू० एन० ओ० का बीच बचाव इन पोलिटिकल बातों से इन लोगों का जीवन अलग कैसे किया जा सकता है।'' जान ने गम्भीरता से कहा।

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