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गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

तभी ट्रांसमीटर की सिगनल लाईट हुई। जान ने सिगनल से ओ० के० कहा। उसका संकेत पाते ही रशीद उधर चला आया। रजिया और परवीन झट मशीन के पास आकर बैठ गईं और टेप चला दिया।

रशीद ने सिगनल द्वारा श्रीनगर और यू० एन० ओ० की सारी रिपोर्ट कोड शब्दों में हैड क्वार्टर पहुंचा दी और वहां से अगले दो सप्ताह के लिए अपने लिए आदेश ले लिए उसने हैड क्वार्टर को यह भी संदेश दिया कि उसकी कुशलता का संदेश सलमा को पहुंचा दिया जाए।

सिगनल बंद होने के साथ ही रशीद मुड़ा और उसने रजिया व परवीन को पूरे आदेश लिख लेने के लिए कहा। रुख़साना ने आगे बढ़कर रशीद को सिगरेट दिया और पूछा-''एनी थिंग स्पेशियल?''

''नथिंग...। सब काम मेरे सुपुर्द हुए हैं। शायद मुझे आज़ाद कश्मीर के बार्डर तक जाना पड़े।''

''कोई बात नहीं...सब इंतज़ाम हो जाएगा।'' जान ने सिगरेट का लंबा कश खींचते हुए रशीद को सांत्वना दी और रुख़साना को दो कप काफी बनाने के लिए कहा।

रशीद और रुख़साना जव पीर बाबा के मकान से लौटे तो टीले के नीचे टैक्सी वाला अभी तक खड़ा उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। इससे पहले कि वह उनसे कुछ कहे, रशीद ने मुस्कराते हुए कहा- ''तुमने ठीक ही कहा था पीर बाबा इस दुनियां के इंसान नहीं मालूम होते...वे तो सचमुच आसमान से उतरे हुए फ़रिश्ता हैं।''

टैक्सी वाला उसकी बात सुनकर जैसे लम्बी प्रतीक्षा का सारा कष्ट भूल गया हो। उसने मुस्करा कर टैक्सी स्टार्ट की और श्रीनगर जाने वाली सडक पर हो लिया।

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