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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

पूनम ने माथे पर बल डालकर उसे यों देखा, जैसे कह रही हो कि उसकी पसंद बिलकुल व्यर्थ थी। और फिर दूसरे काउंटर पर जाकर चंद साड़ियों में से एक सफ़ेद रंग की साड़ी मां के लिए पसंद कर दी। फिर शालों वाले काउंटर पर जाकर एक सफ़ेद ऊनी शाल चुन दी। रशीद ने दोनों को पैक कराकर मूल्य चुका दिया।

इससे पहले कि पहले रशीद पूनम का धन्यवाद करता, वह दूकान के बाहर जा चुकी थी। रशीद भी जल्दी-जल्दी पैकिट संभाल कर बाहर निकल आया। लेकिन पूनम तब तक तेज़-तेज़ पांव उठाती हुई फ्रूट की एक दूकान में जा घुसी थी। रशीद बाजार में खड़ा इधर-उधर दृष्टि घुमाकर उसे ढढता रहा और वह फूट की दूकान के एक कोने में छिप एक खिड़की से उसकी बेचैनी देखकर मुस्कराती रही। वह कुछ देर तक वहीं खड़ी रही, लेकिन रशीद ने भी शायद निश्चय कर लिया था कि जब तक वह उसे न मिल जाएगी, वह भी वहां से नहीं हिलेगा।

कुछ देर बाद पूनम ने फ्रूट खरीद लिए और छोटी-सी एक टोकरी लिए, बिना रशीद की ओर देखे एक ओर चल पड़ी। रशीद ने उसे दूकान से निकलते देख लिया और तेजी से आकर उसके साथ क़दम मिलाकर चलने लगा। पूनम को उसका साथ चलना अच्छा लग रहा था परंतु उसके चेहरे से बनावटी क्रोध झलक रहा था। रशीद ने दो-एक बार उससे बात करना चाहा, लेकिन कोई उत्तर न पाकर और उसकी नाराजगी का अनुभव करके वह चुप रहा। पूमम बाजार छोड़कर उस सड़क पर हो ली, जो कश्मीर एम्पोरियम की ओर जाती थी।

''पूनम...आखिर यह रुखाई क्यों?'' अंत में रशीद से न रहा गया।

''यह अपने दिल से पूछिए।'' पूनम ने बिना उसकी ओर देखे हुए उत्तर दिया।

"मैं अपनी भूल मानता हूं, जो कल रात न आ सका। वास्तव में...''

"मैं आपकी विवशता और बहाने सब समझती हूं।" रशीद की बात को काटते हुए उसने कहा और फिर पलभर चुप रहकर रुंधी हुई आवाज़ में बोली-''आप नहीं जानते, कल रात आवाज से मुझे कितना शर्मिन्दा होना पड़ा।''

''मैं जानता हूं। मेरे अर्दली ने मुझसे सबकुछ कह दिया था।''

''इस पर भी आपने मेरी प्रार्थना को कोई महत्त्व नहीं दिया। कितनी निराश हुई मैं...।''

''मुझे खेद है पूनम! इसके बारे में मैंने सुबह ही जाकर तुम्हारी आंटी से क्षमा मांग ली।''

रशीद की बात सुनकर पूनम ने चौंककर उसे देखा। दृष्टि मिलते ही रशीद अपनी बात आगे बढ़ाता हुआ बोला-''हां-हां...उनका सारा क्रोध पिघल गया है। मैंने उन्हीं के हाथ का बनाया नाश्ता किया और काफ़ी देर तक गपशप करके यहां आया हूं।''

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