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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''लिखिएगा-अब हम दोनों से प्रतीक्षा नहीं होती।'' वह मुस्कराकर बोली।

रशीद उसकी बात पर अनायास हंस दिया और फिर अपनी हंसी रोकते हुए साड़ी का पैकिट उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला-''यह लो...इस भेंट का साधारण-सा उपहार।

पूनम ने कृतज्ञता भरी दृष्टि से उसे देखा और पैकिट स्वीकार करते हुए बोली-''थैंक यू।''

''अब कहां चलना होगा?'' रशीद ने पूछा।

''कुछ शापिंग और बाकी है। फिर प्रोग्राम यह है कि अगर मैं बारह बजे तक घर नहीं पहुंची तो आंटी कश्मीर एम्पोरियम के पास मुझसे आ मिलेंगी और फिर हम लोग उनकी किसी सहेली के यहाँ खाना खाएंगी।''

''तो मैं चलूं...जीप गाड़ी चौक में पार्क कर रखी है।''

''फिर कब मिलिएगा?''

''कल दोपहर को एयरपोर्ट पर।''

''रात को आ जाइए न।'' उसने अनुनय करते हुए कहा।

''नहीं, पूनम सॉरी...आज आफिसर्स मैस में एक आफ़िसर का सैंड आफ' हैँ। जल्दी नहीं निकल सकूंगा।''

''पार्टी में औरतें भी तो आ सकती हैं न?''

''हां-हां, क्यों नहीं।''

''बस, तो ठीक है। मैं आपसे मिलने वहीं आ रही हूं।'' पूनम ने बिना किसी झिझक के कहा और 'बाई-बाई' कहती हुई एम्पोरियम की ओर चली गई।

रशीद चुपचाप खड़ा उसे देखता रहा और जब वह आंखों से ओझल हो गई। तो उसने खुदा का शुक्र किया कि आज सचमुच मैस में 'सैंड आफ़' था और उसने हर रोज़ की तरह पूनम से झूठा बहाना नहीं किया था। वह मुस्कराता हुआ जीप गाड़ी की ओर बढ़ने लगा।

उसी शाम जब वह घर लौटा तो रणजीत का घनिष्ठ दोस्त गुरनाम पहले से ही वहां विराजमान था। उसे अचानक वहां देखकर रशीद ने आश्चर्य से कहा-''ओ गुरनाम...तू कब आया?''

''दोपहर की बस से।''

''आने की सूचना तो दे दी होती।''

''अरे, यार को खबर दूं कि मैं आ रहा हूं। यह मेरी आदत नहीं मैं तो बोरिया-बिस्तर उठाकर बस अचानक ही आ धमकता हूं।''

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