लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> वीर बालिकाएँ

वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

152 पाठक हैं

साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

इतने में वहाँ राजपूत सैनिक भी आ गये। बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन थोड़े से राजपूत सैनिक शत्रु की बड़ी भारी सेना से जीत नहीं सके। राजा खेमराज, उनकी रानी और उनकी पुत्री सरदारबाई को रहमतखाँ के सैनिकों ने पकड़ लिया। उनको साथ लेकर रहमतखाँ गुजरात की राजधानी पाटन की ओर चल पड़ा। रास्ते में ही रहमतखाँ एक दिन रात को सरदारबाई के डेरे में गया। सरदारबाई ने प्रसन्न मुख से उसका स्वागत किया। रहमतखाँ जब सरदारबाई की बातों में आ गया, तब सरदारबाई ने शराब मँगवायी और अपने हाथों वह रहमतखाँ को पिलाने लगी।

इतनी शराब पिलायी कि रहमतखाँ बेहोश हो गया। उस वीर राजपूत कन्या ने बेहोश रहमतखाँ को पैर से ठोकर मारकर पलँग से नीचे लुढ़का दिया। वह डेरे से बाहर निकली। सभी पहरेदार शराब पीये पड़े थे। उसने एक सिपाही का कपड़ा उतारकर पहिन लिया और अँधेरी रात में घोड़े पर चढ़कर वहाँ से चली गयी।

रहमतखाँ को जब होश आया तो उसने देखा कि वहाँ सरदारबाई के कपड़े पड़े हैं और एक सिपाही नंगा पड़ा है। वह सरदारबाई के भागने की बात समझ गया। चारों ओर घुड़सवार दौड़ाये गये; पर सरदारबाई अब कहाँ मिलनेवाली थी। रहमतखाँ ने सरदारबाई के पिता राजा खेमराज और उनकी रानी को धमकाकर मुसलमान हो जाने को कहा; किंतु सच्चे हिंदू प्राण के भय से धर्म नहीं छोड़ा करते। जब राजा और रानी ने हिंदू धर्म छोड़ना स्वीकार नहीं किया तो रहमतखाँ ने उनको मरवा दिया। सरदारबाई के भाग जाने का यह बदला लेकर उसे संतोष करना पड़ा।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book