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प्रेमचन्द की कहानियाँ 2

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9763

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दूसरा भाग


हेम बाबू गरजकर बोले, ''निरा गधा है। क्यूँ रे मूर्ख, क्या सारे कलकत्ता में भुवन के सिवा और कोई मोटा आदमी है ही नहीं?''

''अजी साहब, यह किसी और से जाकर पूछिए। यह न मैं जानता हूँ और न जानना चाहता हूँ।''

हेम बाबू दाँत पीसकर बोले, ''मैं तुम्हें जताए देता हूँ अब भी समझ जाओ। अभी कुछ नहीं बिगड़ा है। अपनी खैरियत चाहते हो तो ठंडे-ठंडे घर की राह लो, वरना मेरा मारा पानी भी नहीं माँगता। भुवन ही सारी दुनिया में मोटा आदमी है, यह कहाँ का तर्क है? भुवन भी मोटा था और मैं भी जरा मोटा आदमी हूँ। बस, इसके यही मानी हैं कि मैं भुवन हूँ?''

उसने मजाक में हँसकर कहा, ''और इसी का क्या सबूत है कि आप भुवन नहीं हैं? अपनी बचाव के सबूत में तो आपके पास बस यही एक कार्ड है न? मगर इसका गवाह कौन है कि आप में से एक साहब देवेंद्र बाबू हैं? जाने दीजिए, बहुत हो गया। अब मेरे साथ चलिए। मेरे पास नष्ट करने के लिए जरा भी वक्त नहीं है। आप जैसे लोगों की बदौलत मरने की भी फ़ुरसत नहीं।''

मैंने कहा, ''अच्छा, मैं यहाँ के किसी आदमी से साबित करा दूँ कि मैं हरेंद्र नहीं हूँ तब तो फिर हम लोगों से कोई मतलब न रहेगा?''

हेम बाबू ने अथाह नदी में सहारा पाकर पूछा, ''उसी आदमी की बात है न, जिससे आज आपकी मुलाक़ात हुई थी?''

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