नई पुस्तकें >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 2 प्रेमचन्द की कहानियाँ 2प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दूसरा भाग
इंस्पेक्टर साहब ने कहा, ''मैंने अपनी जानकारी में तो किसी आदमी को नहीं छोड़ा, जिससे आप लोगों के संबंध में पता न किया हो।''
मैंने जोर देकर कहा, ''मगर यहीं कम-से-कम एक आदमी ऐसा जरूर है, जो मुझसे वाक़िफ है और वह भी यहाँ का नया नहीं, पुराना बाशिंदा है।''
''खैर, उसका नाम बताइए।''
मैंने कहा, ''उसका नाम? बात यह है कि मुझे उसका नाम नहीं याद आता है।'' इस वक्त महज उससे गला छुड़ाने के लिए कह दिया था कि आपकी बात मुझे याद रहेगी। बहुत देर तक सोचने पर भी मुझे उसका नाम याद न आया तो मैंने जवाब दिया, ''जनाब उसका तो नाम याद नहीं पड़ता।''
इंस्पेक्टर बोला- ''यह तो मैं पहले ही समझ गया था कि यह सब बहानेबाज़ी है। अच्छा तो देर न कीजिए। फौरन मेरे साथ चलिए।''
मैंने बात काटकर कहा, ''नहीं-नहीं, उससे आज ही मेरी मुलाक़ात हुई है। नाम होंठों पर ही है, जरा ठहरो, मैं बताता हूँ।''
हेम बाबू मायूस होकर बैठ गए। पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, ''बहुत देर देख लिया, अब नहीं ठहर सकता। चलिए-चलिए, उठिए।''
मैंने अपनी स्मरण-शक्ति पर इंतहा का जोर किया। आखिर नाम याद आ गया। मैं उछलकर बोला, ''लीजिए, लीजिए, याद आ गया। उसका नाम है प्रान पदपान।''
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