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प्रेमचन्द की कहानियाँ 3

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9764

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसरा भाग


कोकिला ने श्रृद्धा से कुछ भी न कहा,; लेकिन दूसरे दिन भगतराम से बोली, 'अब किस विचार में हो, बेटा ?'

भगतराम ने सिर खुजलाते हुए कहा, 'अम्माँजी, मैं तो हाजिर हूँ, लेकिन घरवाले किसी तरह राजी नहीं होते। जरा फुरसत मिले, तो घर जाकर राजी कर लूँ। माँ-बाप को नाराज करना भी तो अच्छा नहीं !'

कोकिला कुछ जवाब न दे सकी।

भगतराम के माँ-बाप शहर से दूर रहते थे। यही एक उनका लड़का था। उनकी सारी उमंगें उसी के विवाह पर अवलम्बित थीं। उन्होंने कई बार उसकी शादी तय की। पर भगतराम बार-बार यही कहकर निकल जाता कि जब तक नौकर न हो जाऊँगा, विवाह न करूँगा। अब वह नौकर हो गया था, इसलिए दोनों माघ के एक ठण्डे प्रात:काल में लदे-फॅदे भगतराम के मकान पर आ पहुँचे। भगतराम ने दौड़कर उनकी पद-धूलि ली और कुशल आदि पूछने के बाद कहा, 'आप लोगों ने इस जाड़े-पाले में क्यों तकलीफ की ? मुझे बुला लिया होता।'

चौधरी ने अपनी पत्नी की ओर देखकर कहा, 'सुनती हो बच्चा की अम्माँ ! जब बुलाते हैं, तो कहते हैं कि इम्तिहान है, यह है, वह है। जब आ गये, तो कहता है, बुलाया क्यों नहीं ! तुम्हारा विवाह ठीक हो गया है। अब एक महीने की छुट्टी लेकर हमारे साथ चलना होगा। इसीलिए दोनों आये हैं।'

चौधराइन -- 'हमने कहा, कि बिना गये काम नहीं चलेगा। तो आज ही दरखास दे दो। लड़की बड़ी सुन्दर, पढ़ी-लिखी, अच्छे कुल की है।'

भगतराम ने लजाते हुए कहा, 'मेरा विवाह तो यहीं एक जगह लगा हुआ है, अगर आप राजी हों, तो कर लूँ।'

चौधरी- 'इस शहर में हमारी बिरादरी का कौन है, क्यों बच्चा की अम्माँ ?

चौधराइन- 'यहाँ हमारी बिरादरी का तो कोई नहीं है।'

भगतराम- 'माँ-बेटी हैं। घर में रुपया भी है। लड़की ऐसी है कि तुम लोग देखकर खुश हो जाओगे। मुफ्त में शादी हो जायगी।'

चौधरी- 'क्या लड़की का बाप मर गया है ? उसका क्या नाम था ? कहाँ का रहनेवाला है। कुल-मरजाद कैसा है ज़ब तक यह सारी बातें मालूम न हो जायँ, तब तक ब्याह कैसे हो सकता है ! क्यों बच्चा की अम्माँ ?'

चौधराइन- 'हाँ, बिना इन बातों का पता लगाये कैसे हो सकता है ?'

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