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प्रेमचन्द की कहानियाँ 3

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9764

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसरा भाग


भगतराम ने कोई जवाब नहीं दिया।

चौधरी- 'यहाँ किस मुहल्ले में रहती हैं माँ-बेटी ? सारा शहर हमारा छाना पड़ा है, हम यहाँ कोई बीस साल रहे होंगे, क्यों बच्चा की अम्माँ ?'

चौधराइन -'बीस साल से ज्यादा रहे हैं।'

भगतराम- 'उनका घर नखास पर है।'

चौधरी- 'नखास से किस तरफ ?'

भगतराम- 'नखास की सामनेवाली गली में पहला मकान उन्हीं का है। सड़क से दिखाई देता है।

चौधरी- 'पहला मकान तो कोकिला रण्डी का है। गुलाबी रंग से पुता हुआ है न ?'

भगतराम ने झेंपते हुए कहा, 'ज़ी हाँ, वही मकान है !'

चौधरी- 'तो उसमें कोकिला रण्डी नहीं रहती क्या ?'

भगतराम- 'रहती क्यों नहीं। माँ बेटी, दोनों ही तो रहती हैं।'

चौधरी- 'तो क्या कोकिला रण्डी की लड़की से ब्याह करना चाहते हो ? नाक कटवाने पर लगे हो क्या ? बिरादरी में तो कोई पानी पियेगा नहीं।'

चौधराइन- 'लूका लगा दूँगी मुँह में रॉड़ के ! रूप-रंग देखकर के लुभा गये क्या ?'

भगतराम- 'मैं तो इसे अपना भाग्य समझता हूँ कि वह अपनी लड़की की शादी मेरे साथ करने को राजी है। अगर वह आज चाहे, तो किसी बड़े-से-बड़े रईस के घर में शादी कर सकती है।'

चौधरी- 'रईस उससे ब्याह न करेगा रख लेगा। तुम्हें भगवान् समाई दे तो एक नहीं चार रखो। मरदों के लिए कौन रोक है ! लेकिन जो ब्याह के लिए कहो तो ब्याह वही है, जो बिरादरी में हो।'

चौधराइन- 'बहुत पढ़ने से आदमी बौरा जाता है।'

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