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प्रेमचन्द की कहानियाँ 3

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9764

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसरा भाग


चौधरी और चौधराइन को शहर आये हुए दो सप्ताह बीत गये। वे रोज जाने के लिए कमर कसते; लेकिन फिर रह जाते। श्रृद्धा उन्हें जाने न देती। सबेरे जब उनकी आँखें खुलतीं, तो श्रृद्धा उनके स्नान के लिए पानी तपाती हुई होती, चौधरी को अपना हुक्का भरा हुआ मिलता। वे लोग ज्योंही नहाकर उठते, श्रृद्धा उनकी धोती छाँटने लगती। दोनों उसकी सेवा और अविरत परिश्रम देखकर दंग रह जाते। ऐसी सुन्दर, ऐसी मधुभाषिणी, ऐसी हँसमुख और चतुर रमणी चौधरी ने इंस्पेक्टर साहब के घर में भी न देखी थी। चौधरी को वह देवी मालूम होती और चौधराइन को लक्ष्मी। दोनों श्रृद्धा की सेवा और टहल व प्रेम पर आश्चर्य करते थे; किन्तु तो भी कलंक और बिरादरी का प्रश्न उनके मुँह पर मुहर लगाये हुए था। पन्द्रहवें दिन जब श्रृद्धा दस बजे रात को अपने घर चली गयी, तो चौधरी ने चौधराइन से कहा, 'लड़की तो साक्षात् लक्ष्मी है।'

चौधराइन- 'ज़ब मेरी धोती छाँटने लगती है, तो मैं मारे लाज के कट जाती हूँ। हमारी तरह तो इसकी लौंडी होगी।'

चौधरी- 'फ़िर क्या सलाह देती हो अपनी बिरादरी में तो ऐसी सुघर लड़की मिलने की नहीं।'

चौधराइन- 'राम का नाम लेकर ब्याह करो। बहुत होगा रोटी पड़ जायगी। पाँच बीसी में तो रोटी होती है, कौन छप्पन टके लगते हैं। पहले हमें शंका होती थी कि पतुरिया की लड़की न जाने कैसी हो, कैसी न हो, पर अब सारी शंका मिट गई।'

चौधरी- 'ज़ब बातें करती है, तो मालूम होता है, मुँह से फूल झड़ते हैं।'

चौधराइन- 'मैं तो उसकी माँ को बखानती हूँ, जिसकी कोख में ऐसी लक्ष्मी जनमी।'

चौधरी- 'क़ल चलो, कोकिला से मिलकर सब ठीक-ठाक कर आयें।'

चौधराइन- 'मुझे तो उसके घर जाते सरम लगती है। वह रानी बनी बैठी होगी; मैं तो उसकी लौंडी मालूम होऊँगी।'

चौधरी- 'तो फिर पाउडर मँगाकर मुँह में पोत लो ग़ोरी हो जाओगी। इंस्पेक्टर साहब की मेम भी तो रोज पाउडर लगाती थीं। रंग तो सांवला था;पर जब पाउडर लगा लेतीं तो मुँह चमकने लगता था।'

चौधराइन- 'हँसी करोगे तो गाली दूँगी, हाँ। काली चमड़ी पर कोई रंग चढ़ता है, जो पाउडर चढ़ जायगा ? तुम तो सचमुच उसके चौकीदार से लगोगे।'

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