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प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9767

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग


एक दिन कजाकी को डाक का थैला लेकर आने में देर हो गई। सूर्यास्त हो गया और वह दिखलाई न दिया। मैं खोया हुआ सा सड़क पर दूर तक आँखें फाड़-फाड़कर देखता था, पर वह परिचित रेखा न दिखलाई पड़ती थी; कान लगाकर सुनता था, ‘झुन-झुन’ की वह आमोदमय ध्वनि न सुनाई देती थी। प्रकाश के साथ मेरी आशा भी मलिन होती जा रही थी। उधर से किसी को आते देखता तो पूछता–कजाकी आता है? पर या तो कोई सुनता ही न था या केवल सिर हिला देता था।

सहसा ‘झुन-झुन’ की आवाज कानों में आई। मुझे अँधेरे में चारों ओर भूत ही दिखलाई देते थे; यहाँ तक कि माताजी के कमरे में ताक पर रखी हुई मिठाई भी अँधेरा हो जाने के बाद मेरे लिए त्याज्य हो जाती थी। लेकिन वह आवाज सुनते ही मैं उसकी तरफ जोर से दौड़ा। हाँ, वह कजाकी ही था। उसे देखते ही मेरी विकलता क्रोध में बदल गई। मैं उसे मारने लगा, फिर मार करके अलग खड़ा हो गया।

कजाकी ने हँसकर कहा- मारोगे तो मैं एक चीज लाया हूँ, वह नहीं दूँगा।

मैंने साहस करके कहा- जाओ, मत देना। मैं लूँगा ही नहीं।

कजाकी- अभी दिखा दूँ तो दौड़कर गोद में उठा लोगे।

मैंने पिघलकर कहा- अच्छा, दिखा दो।

कजाकी- तो आकर मेरे कंधे पर बैठ जाओ, भाग चलूँ। आज बहुत देर हो गई है बाबूजी बिगड़ रहे होंगे।

मैंने अकड़ कर कहा- पहले दिखा दो।

मेरी विजय हुई। अगर कजाकी को देर का डर न होता और वह एक मिनट भी रुक सकता तो शायद पाँसा पलट जाता। उसने कोई चीज दिखलाई, जिसे वह एक हाथ से छाती से चिपटाए हुए था। लंबा मुँह था, दो आँखें चमक रही थीं।

मैंने दौड़कर उसे कजाकी की गोद से ले लिया। वह हिरन का बच्चा था।

आह! मेरी उस खुशी का कौन अनुमान करेगा? तब से कठिन परीक्षाएँ पास कीं, अच्छा पद भी पाया; वह खुशी फिर न हासिल हुई। मैं उसे गोद में लिये, उसके कोमल स्पर्श का आनंद उठाता घर की ओर दौड़ा। कजाकी को आने में क्यों इतनी देर हुई, इसका खयाल ही न रहा।

मैंने पूछा- यह कहाँ मिला कजाकी ?

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