लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9767

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

250 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग


कजाकी- भैया, यहाँ से थोड़ी दूर पर एक जंगल है। उसमें बहुत से हिरन हैं। मेरा बहुत जी चाहता था कोई बच्चा मिल जाय तो तुम्हें दूँ। आज यह बच्चा हिरनों के झुंड के साथ दिखलाई दिया। मैं झुंड की ओर दौड़ा, तो सब-के-सब भागे। यह बच्चा भी भागा। लेकिन मैंने पीछा न छोड़ा। और हिरन तो बहुत दूर निकल गए, यही पीछे रह गया। मैंने इसे पक़ड़ लिया। इसी से इतनी देर हुई।

यों बाते करते हम दोनों डाकखाने पहुँचे।

बाबूजी ने मुझे न देखा, हिरन के बच्चे को भी न देखा, कजाकी पर ही उसकी निगाह पड़ी। बिगड़कर बोले- आज इतनी देर कहाँ लगाई? अब थैला लेकर आया है, उसे क्या करूँ? डाक तो चली गई। बता तूने इतनी देर कहाँ लगाई ?

कजाकी के मुँह से आवाज निकली।

बाबूजी ने कहा- तुझे शायद अब नौकरी नहीं करनी है। नीच है न, पेट भरा तो मोटा हो गया। जब भूखों मरने लगेगा तो आँखें खुलेंगी।

कजाकी चुपचाप खड़ा रहा।

बाबूजी का क्रोध और बढ़ा। बोले- अच्छा, थैला दे, और अपने घर की राह ले। सुअर, अब डाक लेके आया है ! तेरा क्या बिगड़ेगा! जहाँ चाहेगा, मजदूरी कर लेगा। माथे तो मेरे जाएगी - जवाब तो मुझसे तलब होगा।

कजाकी ने रुआसे होकर कहा- सरकार, अब कभी देर न होगी।

बाबूजी- आज क्यों देर की, इसका जवाब दे ?

कजाकी के पास इसका कोई जवाब न था। आश्चर्य तो यह था कि मेरी जवान भी बंद हो गई। बाबूजी बड़े गुस्सावर थे। उन्हें काम करना पड़ता था, इसी से बात-बात पर झुँझला पड़ते थे। मैं तो उनके सामने कभी जाता ही न था। वह भी मुझे कभी प्यार न करते थे। घर में केवल दो बार घंटे-घंटे भर के लिए भोजन करने आते थे, बाकी सारे दिन दफ्तर में लिखा-पढ़ी करते थे। उन्होंने बार-बार एक सहकारी को लिए अफसरों से विनय की थी; कुछ असर न हुआ था।

यहाँ तक कि अवकाश के दिन भी बाबूजी दफ्तर में ही रहते थे। केवल माताजी उनका क्रोध शान्त करना जानती थीं; पर वह दफ्तर में कैसे आतीं। बेचारा कजाकी उसी वक्त मेरे देखते-देखते निकाल दिया गया। उसका बल्लम, चपरास व साफा छीन लिया गया और उसे डाकखाने से निकल जाने का नादिरी हुक्म सुना दिया गया। आह! उस वक्त मेरा ऐसा जी चाहता था कि मेरे पास सोने की लंका होती तो कजाकी को दे देता और बाबूजी को दिखा देता कि आपके निकाल देने से कजाकी का बाल भी बाँका नहीं हुआ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book