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प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9767

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग


किसी योद्धा को अपनी तलवार पर जितना घमंड होता है उतना ही घंमड कजाकी को अपनी चपरास पर था। जब वह चपरास खोलने लगा, तो उसके हाथ काँप रहे थे और आँखों से आँसू बह रहे थे। और इस सारे उपद्रव की जड़ वह कोमल वस्तु थी, जो मेरी गोद में मुँह छिपाए ऐसे चैन से बैठी थी कि मानो माता की गोद में हो।
जब कजाकी चला गया तो मैं धीरे-धीरे उसके पीछे चला।

मेरे घर के द्वार पर आकर कजाकी ने कहा- भैया, अब घर जाओ; साँझ हो गई। मैं चुपचाप खड़ा अपने आँसुओं के वेग को सारी शक्ति से दबा रहा था।

कजाकी फिर बोला- भैया, मैं कहीं बाहर थोड़े ही जा रहा हूँ फिर आऊँगा। फिर और तुम्हें कंधे पर बैठाकर कुदाऊँगा। बाबूजी ने नौकरी ले ली है तो क्या इतना न करने देंगे। तुमको छोड़कर मैं कहीं न जाऊँगा, भैया! जाकर अम्मा से कह दो, कजाकी जाता है। इसका कहा-सुना माफ करें।’

मैं दौड़ा हुआ घर गया; लेकिन अम्माँजी से कुछ कहने के बदले बिलख-बिलखकर रोने लगा।
अम्माँजी रसोई से बाहर निकल कर पूछने लगीं- क्या हुआ बेटा? किसने मारा? बाबूजी ने कुछ कहा है? अच्छा, रह तो जाओ। आज घर आते हैं, पूछती हूँ। जब देखो, मेरे लड़के को मारा करते हैं। चुप रहो, बेटा, अब तुम उनके पास कभी मत जाना।

मैंने बड़ी मुश्किल से आवाज सँभालकर कहा- कजाकी...

अम्मा ने समझा कजाकी ने मारा है। बोली- अच्छा आने दो कजाकी को। देखो, खड़े-खड़े निकलवा देती हूँ। हरकारा होकर मेरे राजा बेटा को मारे! आज ही तो साफा, बल्लम-सब छिनवा लेती हूँ। वाह!

मैंने जल्दी से कहा- नहीं, कजाकी ने नहीं मारा। बाबूजी ने उसे निकाल दिया, उसका साफा, बल्लम छीन लिया-चपरास भी ले ली।

अम्माँ- यह तुम्हारे बाबूजी ने बहुत बुरा किया। वह बेचारा अपने काम में इतना चौकस रहता है। फिर भी उसे निकाला?

मैंने कहा- आज उसे देर हो गई थी।’

यह कहकर मैंने हिरन के बच्चे को गोद से उतार दिया। घर में उसके भाग जाने का भय नहीं था। अब तक अम्माँजी की निगाह उस पर न पड़ी थी। उसे फुदकते देखकर वह सहसा चौंक पड़ीं और लपककर मेरा हाथ पकड़ लिया कि कहीं यह भयंकर जीव मुझे काट न खाए। मैं कहाँ तो फूट-फूटकर रो रहा था और कहाँ अम्माँ की घबराहट देखकर खिलखिलाकर हँस पड़ा।

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