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प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9767

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग


पूर्वकाल में दहेज का नाम भी न थ। महाशयो ! कोई जानता ही न था कि दहेज या ठहरौनी किस चिड़िया का नाम है। सत्य मानिए, कोई जानता ही न था कि ठहरौनी है क्या चीज, पशु या पक्षी, आसमान में या जमीन में, खाने में या पीने में। बादशाही जमाने में इस प्रथा की बुंनियाद पड़ी। हमारे युवक सेनाओं में सम्मिलित होने लगे। यह वीर लोग थे, सेनाओं में जाना गर्व समझते थे। माताएं अपने दुलारों को अपने हाथ से शस्त्रों से सजा कर रणक्षेत्र भेजती थीं। इस भॉँति युवकों की संख्या कम होने लगी और लड़कों का मोल-तोल शुरू हुआ। आज यह नौवत आ गयी है कि मेरी इस तुच्छ-महातुच्छ सेवा पर पत्रों में टिप्पणियां हो रही हैं मानों मैंने कोई असाधारण काम किया है। मैं कहता हूं; अगर आप संसार में जीवित रहना चाहते हो तो इस प्रथा का तुरन्त अन्त कीजिए।

एक महाशय ने शंका की- क्या इसका अंत किये बिना हम सब मर जायेंगे ?

यशोदानन्द- अगर ऐसा होता है तो क्या पूछना था, लोगों को दंड मिल जाता और वास्तव में ऐसा होना चाहिए। यह ईश्वर का अत्याचार है कि ऐसे लोभी, धन पर गिरने वाले, बुर्दा-फरोश, अपनी संतान का विक्रय करने वाले नराधम जीवित हैं और समाज उनका तिरस्कार नहीं करता। मगर वह सब बुर्द-फरोश हैं------इत्यादि।

व्याख्यान बहुत लम्बा और हास्य भरा हुआ था। लोगों ने खूब वाह-वाह की। अपना वक्तव्य समाप्त करने के बाद उन्होंने अपने छोटे लड़के परमानन्द को, जिसकी अवस्था 7 वर्ष की थी, मंच पर खड़ा किया। उसे उन्होंने एक छोटा-सा व्याख्यान लिखकर दे रखा था। दिखाना चाहते थे कि इस कुल के छोटे बालक भी कितने कुशाग्र बुद्वि हैं। सभा समाजों में बालकों से व्याख्यान दिलाने की प्रथा है ही, किसी को कुतूहल न हुआ। बालक बड़ा सुन्दर, होनहार, हंसमुख था। मुस्कराता हुआ मंच पर आया और एक जेब से कागज निकाल कर बड़े गर्व के साथ उच्च स्वर में पढ़ने लगा............

प्रिय बंधुवर,
नमस्कार !
आपके पत्र से विदित होता है कि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है। मैं ईश्वर को साक्षी करके कहता हूँ कि धन आपकी सेवा में इतनी गुप्त रीति से पहुंचेगा कि किसी को लेशमात्र भी सन्देह न होगा। हां केवल एक जिज्ञासा करने की धृष्टता करता हूं। इस व्यापार को गुप्त रखने से आपको जो सम्मान और प्रतिष्ठा-लाभ होगा और मेरे निकटवर्ती में मेरी जो निंदा की जाएगी, उसके उपलक्ष्य में मेरे साथ क्या रिआयत होगी ? मेरा विनीत अनुरोध है कि 25 में से 5 निकालकर मेरे साथ न्याय किया जाय...........।

महाशय यशोदानन्द घर में मेहमानों के लिए भोजन परसने का आदेश करने गये थे। निकले तो यह वाक्य उनके कानों में पड़ा- 25 में से 5 मेरे साथ न्याय किया कीजिए। चेहरा फक हो गया, झपट कर लड़के के पास गये, कागज उसके हाथ से छीन लिया और बोले- नालायक, यह क्या पढ़ रहा है, यह तो किसी मुवक्किल का खत है जो उसने अपने मुकदमें के बारे में लिखा था। यह तू कहां से उठा लाया, शैतान जा वह कागज ला, जो तुझे लिखकर दिया गया था।

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