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प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9767

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग


एक महाशय- पढ़ने दीजिए, इस तहरीर में जो लुत्फ है, वह किसी दूसरी तकरीर में न होगा।

दूसरे- जादू वह जो सिर चढ़ के बोले !

तीसरे- अब जलसा बरखास्त कीजिए। मैं तो चला।

चौथा- यहां भी चलते हुए।

यशोदानन्द- बैठिए-बैठिए, पत्तल लगाये जा रहे हैं।

पहले- बेटा परमानन्द, जरा यहां तो आना, तुमने यह कागज कहां पाया ?

परमानन्द- बाबू जी ही तो लिखकर अपने मेज के अन्दर रख दिया था। मुझसे कहा था कि इसे पढ़ना। अब नाहक मुझसे खफा रहे हैं।

यशोदानन्द- वह यह कागज था कि सुअर ! मैंने तो मेज के ऊपर ही रख दिया था। तूने ड्राअर में से क्यों यह कागज निकाला ?

परमानन्द- मुझे मेज पर नहीं मिला।

यशोदान्नद- तो मुझसे क्यों नहीं कहा, ड्राअर क्यों खोला ? देखो, आज ऐसी खबर लेता हूं कि तुम भी याद करोगे। पहले यह आकाशवाणी है।

दूसरे- इसको लीडरी कहते हैं कि अपना उल्लू सीधा करो और नेकनाम भी बनो।

तीसरे- शरम आनी चाहिए। यह त्याग से मिलता है, धोखेधड़ी से नहीं।

चौथे- मिल तो गया था पर एक आंच की कसर रह गयी।

पांचवे- ईश्वर पाखंडियों को यों ही दण्ड देता है।

यह कहते हुए लोग उठ खड़े हुए। यशोदानन्द समझ गये कि भंडा फूट गया, अब रंग न जमेगा। बार-बार परमानन्द को कुपित नेत्रों से देखते थे और डंडा तौलकर रह जाते थे। इस शैतान ने आज जीती-जिताई बाजी खो दी, मुंह में कालिख लग गयी, सिर नीचा हो गया। गोली मार देने का काम किया है। उधर रास्ते में मित्र-वर्ग यों टिप्पणियां करते जा रहे थे--

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