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प्रेमचन्द की कहानियाँ 9

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9770

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग


कल शाम को हम लोग सिनेमा देखने गये थे। सादिक ने आज असाधारण उदारता दिखाई। जेब से वह रुपया निकाल कर सबके लिए टिकट लेने चले। मियां सादिक जो इस अमीरी के बावजूद तंगदिल आदमी हैं, मैं तो कंजूस कहूंगा, हेलेन ने उनकी उदारता को जगा दिया है। मगर हेलेन ने उन्हें रोक लिया और खुद अंदर जाकर सबके लिए टिकट लाई। और यों भी वह इतनी बेदर्दी से रुपया खर्च करती है कि मियां सादिक के छक्के छूट जाते हैं। जब उनका हाथ जेब में जाता है, हेलेन के रुपये काउन्टर पर जा पहुंचते हैं। कुछ भी हो, मैं तो हेलेन के स्वभाव-ज्ञान पर जान देता हूं। ऐसा मालूम होता है वह हमारी फर्माइशों का इन्तजार करती रहती है और उनको पूरा करने में उसे खास मजा आता है।

सादिक साहब को उसने अलब भेंट कर दिया जो योरोप के दुर्लभ चित्रों की अनुकृतियों का संग्रह है और जो उसने योरोप की तमाम चित्रशालाओं में जाकर खुद इकट्ठा किया है। उसकी आंखें कितनी सौंदर्य-प्रेमी हैं। बृजेन्द्र जब शाम को अपना नया सूट पहन कर आया, जो उसने अभी सिलाया है, तो हेलेन ने मुस्करा कर कहा- देखों कहीं नजर न लग जाय तुम्हें! आज तो तुम दूसरे युसूफ बने हुए हो।

बृजेन्द्र बाग-बाग हो गया। मैंने जब लय के साथ अपनी ताजा गजल सुनाई तो वह एक-एक शेर पर उछल-उछल पड़ी। अदभुत काव्यमर्मज्ञ है। मुझे अपनी कविता-रचना पर इतनी खुशी कभी न हुई थी मगर तारीफ जब सबका बुलौवा हो जाये तो उसकी क्या कीमत।

मियां सादिक को कभी अपनी सुन्दरता का दावा नहीं हुआ। भीतरी सौंदर्य से आप जितने मालामाल हैं बाहरी सौंदर्य में उतने ही कंगाल। मगर आज शराब के दौर में ज्यों ही उनकी आंखों में सुर्खी आई हेलेन ने प्रेम से पगे हुए स्वर में कहा- भई, तुम्हारी ये आंखें तो जिगर के पार हुई जाती हैं। और सादिक साहब उस वक्त उसके पैरों पर गिरते-गिरते रुक गये। लज्जा बाधक हुई। उनकी आंखों की ऐसी तारीफ शायद ही किसी ने की हो।

मुझे कभी अपने रूप-रंग, चाल-ढाल की तारीफ सुनने नहीं हो सका कि मैं खूबसूरत हूं। यह मैं जानता कि हेलेन का यह सब सत्कार कोई मतलब नहीं रखता। लेकिन अब मुझे भी यह बेचैनी होने लगी कि देखो मुझ पर क्या इनायत होती है। कोई बात न थी, मगर मैं बेचैन रहा।

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