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प्रेमचन्द की कहानियाँ 9

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9770

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग


जब मैं शाम को यूनिवर्सिटी ग्राउण्ड से खेल की प्रैक्टिस करके आ रहा था तो मेरे ये बिखरे हुए बाल कुछ और ज्यादा बिखरे गये थे। उसने आसक्त नेत्रों से देखकर फौरन कहा- तुम्हारी इन बिखरी हुई जुल्फों पर निसार होने की जी चाहता है!

मैं निहाल हो गया, दिल में क्या-क्या तूफान उठे कह नहीं सकता।

मगर खुदा जाने क्यों हम तीनों में से एक भी उसकी किसी अंदाज या रूप की प्रशंसा शब्दों में नहीं कर पाता। हमें लगता है कि हमें ठीक शब्द नहीं मिलते। जो कुछ हम कह सकते हैं उससे कहीं ज्यादा प्रभावित हैं। कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं होती।

1 फरवरी

हम दिल्ली आ गये। इसी बीच में मुरादाबाद, नैनीताल, देहरादून वगैरह जगहों के दौरे किये मगर कहीं कोई खिलाड़ी न मिला। अलीगढ़ और दिल्ली से कई अच्छे खिलाड़ियों के मिलने की उम्मीद है इसलिए हम लोग वहां कई दिन रहेंगे। एलेविन पूरी होते ही हम लोग बम्बई आ जाएंगे और वहां एक महीने प्रैक्टिस करेंगे। मार्च में आस्ट्रेलियन टीम यहां से रवाना होगी। तब तक वह हिन्दुसतान में सारे पहले से निश्चित मैच खेल चुकी होगी। हम उससे आखिरी मैच खेलेंगे और खुदा ने चाहा तो हिन्दुस्तान की सारी शिकस्तों का बदला चुका देंगे।

सादिक और बृजेन्द्र भी हमारे साथ घूमते रहे। मैं तो न चाहता था कि ये लोग आएं मगर हेलेन को शायद प्रेमियों के जमघट में मजा आता है, हम सबके सब एक ही होटल में हैं और सब हेलेन के मेहमान हैं। स्टेशन पर पहुंचे तो सैकड़ों आदमी हमारा स्वागत करने के लिए मौजूद थे। कई औरतें भी थीं, लेकिन हेलेन को न मालूम क्यों औरतों से आपत्ति है। उनकी संगत से भागती है, खासकर सुन्दर औरतों की छाया से भी दूर रहती है हालांकि उसे किसी सुन्दरी से जलने का कोई कारण नहीं है। यह मानते हुए भी कि हुस्न उस पर खत्म नहीं हो गया है, उसमें आकर्षण के ऐसे तत्व मौजूद हैं कि कोई परी भी उसके मुकाबले में नहीं खड़ी हो सकती। नख-शिख ही तो सब कुछ नहीं है, रुचि का सौंदर्य, बातचीत का सौंदर्य, अदाओं का सौंदर्य भी तो कोई चीज है। प्रेम उसके दिल में है या नहीं खुदा जाने लेकिन प्रेम के प्रदर्शन में वह बेजोड़ है। दिलजोई और नाजबरदारी के फन में हम जैसे दिलदारों को भी उससे शर्मिन्दा होना पड़ता है।

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